Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ अमोलख ऋषिजी अच्चुया, कप्पवरत्रिमाणवासिणो, सरगणविजा, : अणंतराय दुविहा कप्पाइया वेमाणवासी,महिड्डिया उत्तमासुरवरा, एवंत चउविहादेवा सपरिसावि देवा ममायति // भवण बाहण जाणविमाण सयणासणणिय णाणाविह वत्थभसणाणियं, पवरपहरणाणिय णाणामणि पंचवण्णदिव्वंच भायणविहं, णाणाविहा कामरूव विउव्विया अच्छरगण संघाते दीव समुद्दे दिसाओ विदिसाओ चेयियाणिय वणसंडे, पव्वते गाम wimmindainrayscamwimmiinmaaaaaaawain देवियों आदि के परिवार से सहित, भानपति के भवन, वाणव्यंतर के नगर, ज्योतिषियों के विमान, और वैमानिक के रिमान. औरभी ओक प्रकार के वाहन महित, शैय्या, आसन, आदि अनेक प्रकार के पत्र भूपणादि, प्रवर प्रधान शस्त्र, विविध प्रकार के पांच वर्ण की मणि के दीव्य प्रकाशवाले अनेक प्रकार के मनोवांछित रूप के चक्रेय करने वाली अमरा, और अग्रमहिषी सहित, द्वीप समुद्र, दिशा विदिशा, चैत्य, वनखण्ड, पर्वत, नगर, आराभ, उद्यान, कानन, कूवा,तलाव वावडी, दीर्घ वावडी,देवालय, सभा, पानी का प्रभा,इत्यादि स्थानों में अपनीस्तुति कराने के लिये देवालय बनवाये हैं कि जैसे के यह पूर्ण भद्र का देवालय, यह कापदव का देवालय, शूल पानीका देवालय,इत्यादि स्थानोमें ममत्वभाव धारन कर वहां के वस्त्र धूपादि परिग्रह ग्रहण करते हैं. वे इच्छामे निवृत्ति नहीं पाते हुए विशेष वांच्छा करते हुए अती 17 लोभ से पराभव पाये हुए रहते हैं. और भी देवताओं के ममत्व का स्थान बताते हैं. इक्षुकार पर्वत *काचाक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादी है.