Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ 44 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी। हुंति तीसं // 2 // तं चपणपरिग्गर्ह ममयंति, लोभघत्था, भवण घर विमाण व सिणो, परिग्गहरुई परिग्गहे, विविहकरणबुद्धी देव नकायाय असुर भूयगगरल विज्जु जलण दीव उदही दिलिपवण थणिय अणपन्निय, पणपन्निय, ईसीव इय, भयवाइय, कंदीय. महाकंदीथ, कुहंड, पयंगदेवा // पिसाय, भूय, जक्खरक्खस, किन्नर, किंपुरिस, महोरग, गंधव्वा, तिरियवासी पंचविहा जोइसीयादेवा, वहस्सती, चंद, सूर, सुक्क, सणिच्छरा, राहू, धूमकेउ, बुद्धाय, अंगारगाय, तत्ततवाणज्ज, और 30 असंतोष. यह तीम नाप परिग्रह के होते हैं. // 2 // लोभ में ग्रस्त बने हुए परिग्रह ग्रहण करते हैं सो कहते हैं. भवनपति से वैमानिक पर्यंत चारो जाति के देवों की पग्रिह में अधिक रुचि होती है. परिग्रह ग्रहण करने में विविध प्रकार की बुद्धि प्रवर्तती है, अब उन के पृथक् नाम करते हैं-१ असुर कुमार 2 नागकुमार 3 सुवर्ण कुमार 4 विद्युत्कुमार 5 अग्निकुमार 6 द्वीप कुमार 7 उदधि कुमार 8 दिशाकुमार 92 पवन कुमार और 10 स्थनित कुमार यह दश भवनपति, 1 आनपन्नी, 2 पाणपन्नी, 3 इसीबाय 4 भूइवाग, 5 कंदिय 6 महाकदिय 7 कोहंड और 8 पयंग देव. वैसे हैं। 9 पिशाच 10 भूत 11 यक्ष 12 रक्षस, 13 किन्नर 14 किं पुरुष 15 महोरग और 16 गंधर्व, ये सोलह वाणव्यंतर देव हैं. तीरछे / लोक में दीखाइ देते हुए पांच प्रकार के ज्योतिषी, बृहस्पति, चंद्र, सूर्य, शुक्र, शनैश्चर, राहु धूपकेतु, बुध, / *मकारक-राजाहादुर लाराम दासहायनी ज्वाला प्रसादजी*