Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ 4 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + बालचंद संठिय निलाडा, उडपति पडिपुण्ण सोमवयणा, छत्तागारुतिमंगदेसा, घणनिचियसुबद्ध लक्खण्णणय कूडागार निभपिडियग्गसिरा,हुतवहनिदंत धोयतत्त तवणिज रतकेसंतकेसभूमी. सामलीपॉड घणनिचिय छोडियामिउ विसय पसत्थ सुहुमलक्षण सुगंध सुंदर भूयमोयग भिंगनील कजल पहट्ठ भमरगण निद्वनिकुरव निचिय ___कुंचिय पाहिणावात्त मुद्धसिरया सुजाय सुविभत्त संगयंगा, लक्खण वंजण गुणोंववेया, पसत्य बत्तीस लक्खणधरा, हंससरा, कोचसरा, दुदुहिसरा, सीहसरा, भेवसरा, ओघसरा,सुस्सरा, सुस्तरनिग्घोसा,बजारसहनागय संघयण,समचउरंस संठाण सघन विखरे नहीं, कुंची पडे हुए प्रदक्षिणावर्तवाले मस्तक पर केश हैं. अच्छी तरह बनाया हुआ एक से एक मीलता हुवा, लक्षण व्यंजनादि विविध प्रकार के गुणवाला प्रशस्त बत्तीस लक्षणबाला, हंस, सारस, क्रौंच समान दुंदुभि सपान गंभीर स्वर है. सिंह समान स्वर है, मेघ गर्जना समान स्वर है, प्राह रूप स्वर है. अच्छा स्वर है. सुस्वर युक्त मंजुल निर्घोष है. वज्रऋषभनागच मंघयण वाले महापराक्रमी हैं. समचउरंस संस्थान वाले हैं उन के अंगोपांग की छाया उद्योन करती है. इन का शरीर रोग गहत है. काक पक्षी समान चक्षु है. पारापत पक्षी समान में हार का परिणाम है शकुन पक्षी समान निहार है. अर्थत् उन का पुष्ट भाग निहार से खराब होने वहीं, पुष्ट जंघा प्रसरी हुइ है. प्रमोत्पल कपल समान * पकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवमहायजीवालामसादत्री *