Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ , अनुवादक-मालनमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - लक्षण पसत्थ,अच्छिद्द जालपाणी, पीवस्सुजाय कोमलवरंगुली,तंबतलिण सुइरुइल, निहनावा, निद्धपाणीलेहाचंदपाणीलेहा, सूरपाणीलेहा, संखपार्ण लेहा; चक्कपाणिलेहा दिसासोवास्थय पाणीलेहा, रविससि संख वर चक्क दिसा सोवत्थिय विभत्त सुरइय पाणी लेहा, वरमहिस बराह सीह सदुल रिसह नागवर पडिपुण्ण विउलखंधा, चउरंगुलस- पमाणकंबुवर सरिसगीवा, अवाट्टयसु विभत्तचित्तमंसु, उचित मंसल पैमत्थ सहुल विपुल हणुया, उवचिय सिलपवाल बिंबफल सन्नभाधर ट्ठा, पंडुर रेखः विक्कनी है. चंद्र, सर्य शंख, चक्र, दक्षिणात स्वस्तिक इत्यादि हाथ में शुभ रेखा हैं, प्रधान महिष शार्दूस हिंस, हस्ती ममन प्रतिपूर्ण स्कंध हैं. चार अंगुल प्रम न शंख जैसी प्रध न वा है, यथावस्थित सुविभक्त शोभा युक्त मूडो हैं, उपचित पुष्ट-सिल वाली प्रशस्त शार्दूल हि जैमे विस्तीर्ण दाढी है, शिल प्रवाल, विम्ब फल मपान अधरोष्ट हैं, श्वेत चंद्रमा की कला समान निर्मल शंख गाय का दूध समुद्र में का फेन मुचकुंद मोगरे के पुष्प, पानी के कानये, करल तंतू समान श्वेत दांत की पंक्ति है, दांत फटे हुवे नहीं है. सब दांत अखण्ड है. अलग नहीं हैं, अच्छा स्वच्छ चिक्कना जैता एकदांती संपूर्ण दांतकी श्रेणी है अग्नि मे धपा हुआ, धोकर निर्मल किया हुवा तपनीय सुवर्ण समान रक्त वर्ण का त लु और जिव्हा है / गरुड पक्षी ममान लम्बी सीधी ऊंची नाशका है. विक सेत पुंडी क कमल समान आंखें हैं, विकसित *पकापाक राजाबहादुर लाला मुखदवमहायजा ज्वालाप्रमादजी *