Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनो श्री अमोलक ऋषिजी 30 दप्पण, अट्ठ वय, घाव, वाण, नक्खत्त, मेह, मेहल वीणा, जुगुमच्छ, दाम, दामिणि, कमंडल, कमल, घंटा, वरपोत, सूई, सागर, कुमुदागर, मगर, हार, गागर, नग, नगर, नेउर, वइर, किण्णर, मयूर, वर रायहंसा, सारस चकोर, चक्कवाग, मिहुण, चामर, खेडग, पव्वीसगं विपंची, वरतालियंटा, सिरिआनिसेय, मेयणि खगंकुस, विमल कलसभिंगार, वडमाणग, पसत्थ // उत्तम विभत्तवरपुरिस लक्खणधरा, बत्तीसरायवरसहस्साणुजायमग्गा, HE चकोर, चकवा, मिथनक, चामर, खड्ग प्रवीपग, विपंची-मोरली, प्रध न पंखा, अभिषेक युक्त लक्ष्मी, पृथ्वी, खाड्डा, अंकुश, निर्मलश्वेत कमल, झरी, वर्धमान, यों पशस्त उत्तम लक्षण के धाक, वत्तीय इनार मुकुट बंध गजा जिन की आज्ञा में चलते हैं वैसे, चौमठ हजार प्रधान राजकन्या को पियकारी. रक्त पद्म काल समान शरीर की प्रभावाले, कोन्ट वृक्ष की पुष्पणला, और चंपक पुष्पों से अच्छे विरचित प्रधान सुवर्ण समान शरीर की कान्त वाले, सर्वांग सुंदराकार, महामूल्य वाले श्रेष्ट, पाटण के बनाये हुए विचित्र रंगवाले, मग चर्म समान मृद वस्त्र परिधान करने वाले, चीन पाटन का सुवर्ण मूत्र में बनाये हुए है कंगुरे की कोरवाले बस्त्र से विभूषित अंगवाले, सुवर्ण की कटि मेखला युक्त, अवीरा दे चूर्ण और सुपंधित पूष्पों से भरा हुवा मस्तकपाले, आवार्य के पास से आभूषण पहिनने की कला धारन करनेवाले, अच्छी / / * प्रकाशक-राजाबहादुर काला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी