Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ सत्र - 44.28 अदत्त नाम दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथप आश्रवद्वार तिरियजोणितहिपिनिरओवमं अणभवंति वेयणति अणंतकालेण जतिणाम कहिंवि मणुय भावं लहंति, णेगेहिं रियगतिगमण तिरियभर सयसहस्त परियएहिं, तत्थ वियभवंता अणारिया, निश्चकुलसमप्पण्णा आयरियजण लोगवजा, तिरिक्ख भूयाय अकुसला काम भोग तिसिया जहिं 2 निबंधति णिस्यवत्ताण भवप्पवंचकरण पुणोवसंसारवतणे ममूले धम्मसुतिविवजिया, अणजाकूरा, मिच्छित्तसुति पवणाय होति एंगतदङ रुइणो वेढंता, कोसिकार कीडोव्वअप्पंग, अट्ठकम्मततु घणबंधणेणं एवं नरग वहां से यदि मनुष्य भव की प्राप्ति होगई होवे तो वहां भी महा कष्ट भोगता है, वहां पुनः पाप का आच-Ja रन कर अनेक भव नरक के करता है. हजारों भव लियंच के करता है. इस प्रकार संसार में परिभ्रमण करते 2 मनुष्यपना प्राप्त होवे तो अनार्य देश में नीच कुल में उत्पन्न होता है. वह आर्य लोग से दूर रहता है. उसे आर्य लोक छीते भी नहीं है. वहां निर्यच सपान दुःख भोगता रहना है, अकुशल बुद्धि व चतुरता गहित काप भोग की अपप्ति से अत्यंत प्रासित बनाहुआ नीच कर्म कर नरक का बंधण. बांध कर पुनःनरक में उत्पन्न होता है. इस प्रक र दुःख पय भव में परिभ्रमण करता है. नेम मूल धर्म और श्रुति से वर्जित अनार्य भारीकर्मा, मिथ्या शास्त्र का उपदेशक, एकांत हिंसाद दंड युक्त. अन्य जीवो। को सताना करोलियों शीक रा जीव जैसा अनार्य पशु, तुल्य आव कर्म रूप तंतु दोरी से निवड बंधा हुआ है। ध्ययन 18+