Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ अमोलक ऋषिजी :42 अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री उवलभंति-वंत विपुल दुक्ख सयसंपलित्ता परस्म * दव्वेहि जे अविरया // एसोसो अदिणाणस्स फलविवागो इहलोइए पग्लोइएओ अप्पमुहो बहुदुक्खो, * महब्भओ बहुग्यप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चति णयअवेद इत्ता अत्थिहु मोक्खोति // एवमाहंस नायकुलनंदगोमहा जिणोओ वीरवरनामधजो कहेसीयं, अदिण्णादाणस्स फलविवागं एवं ततियंपि अदिण्णादाणं हरयदह मरण भय कलुसतासण, परसंतिकागिझ लोभमूलं, एवं जाव चिरपरिगयं, मणुगयं दुरंत त्तिबेमि // ततियं अहम्मदार सम्मत्तं // 3 // * * काल का दुःख होता है बहुत पापरूप र जसे दारुण कर्कश कठोर असातामे हजारों वर्ष पर्यंत भोगते हुए भी नहीं छूटते हैं. वैसे कर्कोपार्जन होते हैं पूर्ण फल भोगवे पीछे ही छूटो हैं. यह चोरी का फल ज्ञातनंदन श्री महावीर स्वापाने कहा है. यह तीसरा अदत्तादान दाह उत्पन्न करनेवाला, मृत्यु भय करनेवाला, चित्त में कलुषता, करनेवाला, त्रास करनेवाला, असमाधि करने वाला, लोभ का मूल है. इम का जीव को दीर्घ काल से परिचय है, यह दुस्तर है, यों तीसरा अधर्म द्वार का अधिकार महावीर स्वामीने जैसा कहा.तैमा मैने कहा // यह तीसरा अधर्म द्वार संपूर्ण हुवा // 3 // * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजीज्वालासादी*