Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ दशमाङ्ग-प्रश्नध्याकरण सूत्र-प्रथम अश्रवद्वार 418+ विमणसो साएण, डझमाणा, परिभूया हौति सत्त परिवजियाय छोहा, सिप्पकला समय सत्य परिव जिया जहा जायपसुभूया अचियता निच्चं नीयकम्मोव जीविणो लोयकुच्छाणिज्जा, मोहमणोरहनिगत बहुला, आसापास पडिवद्धपाणा अत्योप्पायण कामसोक्खेय लोयसारेहोति अप्पच्चंतकाय, सुटु विउउज्जमता दिवसुज्जत्तं कम्मकयं दुक्ख संठ वय सित्थपिंड संचयपरा, खीणदव्वसारा, निच्चं अधुव धण धण्ण कोसं परिभोगावव जया रहियाकामभाग, परिभोग सवसोक्खा, परसिरि भोगविभोग निस्साण मग्गणापरायणा वरागा अकामिकाए चिणिति दुक्खं वसुह, णेव निब्बुइं प्रतिबंध से बंधाते हुए, अर्थ उपार्जन करना, काग भोगका सेवन करना लोक में निःसल्य बनना, सर्व स्वजन में अप्रतःनकारी, महाकष्ट में उद्यमवंत रहना, सदैव उछपवंत बनकर विश्राम रहित कर्म करने वाले, महा दुःख का संचय करने वाले, शीत पिण्ड का संचय करने वाले, महा द्रव्य प्राप्त कर क्षण मात्र में नाश करने वाले, अस्थिर धन धान्य व ले, रिक्त भण्डार वाल, काम भोग परिभोग के लिये द्रव्य की / नित्य गवेषणा करने में परायण, मनोरथ पूर्ण नहीं होने पर सदैव आर्तध्यान करने वाले समाधि हित, अचिन्त्य विस्तीर्ण सेंकडों दुःख में गले हुए और धीठ होते हैं. इस प्रकार यह अदत्तादान का फल इस लोक में होता है. और पर लोक में महा दुःख करनेवाला होता है. अल्प काल का सुख और बहुत 4441+ अदत्त नामक तृतीय अध्ययन HD