Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ मिलंत खिप्पंत विज्जुजल, विरचित, सम्मप्पह नहतले फूडपहरणं महारण संख भेरी दूंदहि वस्स्तूरफ्उर पडुण्डहा हयनिनाय, गंभीरणदित पक्खुभिय, विपुलघामे हयगय रहजोह तुरिय पसरितरयुद्धत तमंधकार बहुले, कायरनर णयणहियय बाउलकरे, विलुलित उक्कड वरमउडतिरीड' कुंडल दुद्दारामडोक्ति पागउपडांग कुमित, उझाया विजयति, चामरचलंत छत्तंधकार गंभीरे, हयहसित, हत्थिगुलगुलाइय, स्हधगधगाइय.. पाइक्कहराहराइय; अफोडित सहिनादः छिलिलित करनेवाला, अनेक वीरपुरुषों धनुष्यों को कुंडलाकार कर अ में में बाण अहते हैं के आकाश में ऊंचे उछलते है. वैमे त्रिशलादि व येहाथ में धारनकर म्यानमें से तरवार बाहिर नीकालने वाला है, और भी भाला, गदा परशु, मशल, हल, शूल, लकुट, भीडिमाल, मबल, पहिल, गोला. मदाल, मुष्टयमाण, मुद्गल, प्रधान फली, गोफण, पत्या, टाकर, माथडी, कुनी, पीठफली, इलीक इत्यादि शस्त्र झगझगाट' भलकते विद्यत्। मपान . चमकते हुए हो रहे हैं. और भी महा संग्राम में शंख, मेरो, तूर, पडो, वरदू इन के गंभीर, हर्षयुक्त अन्य का क्षोभित करे वैसे, विकीर्ण घोषवाले, मेघ सपान गर्जनावाले शब्द हो रहे हैं. हाथी घोडे, रथ और पदाति यों चारों ओर सेना प्रसर रही है, जिस के चलने से रजरेण उड कर आकाश आच्छादित होगया 1,, इस से महा। मेघ की घटा मानो दीखाइ. देती हो. शूरवीर पुरुषों के नेत्र को प्रिय आकुलता व्याकुलता / 44 अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनिश्री अमोलख ऋ पिजी - * 'कायाक राजाबहादुर लाला मुकदवसहायनी ज्वालामादजी *