Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ परलोपकरमुहाणं, निरयगतिगामियाणं तेहिय आणतजियदंडा तुरियं ओग्याडिया पुरवरहिं सिंघाडग, तिकचउक्त चचा महापहपहेसु वेत्तदंड लकुटकट्ठ लेट्ठ पत्थरपणालि पणोलिया मुट्ठिलया पादपण्हि जाणुकोप्परपहारसंभग्गह मथितगत्ता // 9 // अट्ठारम कम्मकारिणा जायियंगमंगाकलुणा सुक्कोट्टकंठ गलतालु जिब्भजायंता पाणियं, विगय जीवियासा तण्हातिया वरगा तंपिय न लहंति, वज्झपुरिसेहिं धाडियंता, तत्थय खरफरस पडघटियं कूडगह गाढरूढ निरुटुपरमट्ठा वझकर कुडि जुयल नियत्था उस को चोरी के कैसे फल मीलते हैं ? पूर्णतया क्षय नहीं हुए कर्म से पराभव पाये हुवे, खात के मुख से पकडाये हुवे, राजपुरुषों के वश पड हुए, वध करन क शस्त्र से छेदाये हुवे अन्यायी कर्म करने वाले, लांच ग्रहण कर अनेक प्रकार कीया कूड कपट का आचग्न करने वाले, लोगों को ठगने में विशारद, बहुत प्रकार के मृषा वचन बोलनवाले, और परलोक में नरक गामी चोर होते हैं. उन कोई राजपुरुष अपने वश में करके पकड करके शृगाटक, त्रिक, चौक यावत् राजमार्ग में फीराते हुए लठी, गदा, रात, चपेटा. मुष्टि, लता. पगरखी. गोडे वगैरह के प्रहार से उनकी हड्डियों तोडते हैं // 9 // और भी वे अठारा प्रकारके कई करने वाले, प्रत्येक अंग में जिनकी पीडा हुइ है वैमे दयावंत, तृपा से 17 सूख गई हैं जिव्हा वैसे, पानी की याचना करनेवाले, जीवित व तृष्णा जिन की नष्ट होगई हैं वैसे, और दीन 4. अनुमादक चालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिजी * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी बाळाप्रसादजी *