Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ 4 Bansans * दशमलव्याकरण सून मथम अश्रबदर 4 चंचलभममाण गुप्प माणुच्छलंतं पञ्चेणियंत पाणिय, पधाविय खरफरुम पयंडं वाओलियमलिल फुटत वीतिकल्ले ल संकुल महामगरमच्छ कच्छ मोहाग्गाहतिमि संसुमार सावय समायसमुद्धयमाणय पाघोर पउरं कायरजण हियय कंपणं घरमार संत, महब्भयं भयकरं पतिभयं उत्तासणगं अणोरपारं, अग्गमंचेव निरवलंबं उप्पइय पवणधणियलित उवरुवारतरंग दग्य, अतिवेग चक्खु पहमोच्छरंत, कच्छइगंभीर विपुल गुंजित निग्ध य गुरुअ निवति विस्तार पाकर पीछे स्वस्थान में जाते हैं. गगा नदीका वेग चक्रकाल आता हुना दीखाइ देत है. चपलता पूर्वक }nal, नीचे पडता विस्तीर्ण आवर्तन. [जल भ्रमण के स्थान ] में भ्रमर पडता है. कुंडलाकार ऐसे अती चपलब ऊंडे उतरते व्याकुल थोडी देर में बढनाव थोड़ी देर में नीचे पडे वैसा वहां पानी है. शीघ्रता पूर्वक जाती हुई अत्यंत कठोर प्रचण्ड और व्याकुल पानीकी कल्लेल से वहां मगरमच्छ, काच्छवे गोहा, पीचर, मुसुमार, साक्य वगैरह जीवों अथढाते हैं. वे जलवर महा भयंकर, रौद्र कायर पुरूषों के हृदय को कम्पित करे वैसे 4 शब्द करते हैं, वह महा भयकारक उपद्रवका स्थान और त्रास का स्थान देखाइ देता है. दृष्टि से अगोचर है | अर्थात् इस का किनारा नहीं दीखाइ देता है, आकाश जैसा अबलम्बन रहित है. वहां वायु से एक पीछे .. एक यो पानी की तरंगों उछलती है, अतिसंग से भाग नहीं दीखाइ देता है, विस्तीर्ण गंमीर गौरव / 8+ अदत्त नापक तृतीय अध्ययन H