Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ कम्मुणय अकुसला अणज्जा अलियाणं अलियाधम्म निरया अलियासुकहानु / अभिरमंता तुट्टा, अलियं करेहतु // 7 // होतिय बहुप्पगारं तस्सय अलियरस फल विवागं अयाणमाणा वड्रेति महब्भयं अविस्सामवेयण दीहकालबहदुक्ख संकडं नरय तिरिक्खजोणि तेणेय भलिएण समणुबद्धा, अइट्ठा पुणब्भवंधकारे भमंति भीमा दुग्गतिवमहि मुवमया // तेविय दोसंति इह दुग्गता, दुरंता, परब्वसा, अत्यभोगपरिवजिया असुहिया, फुडियनच्छवि वीभत्थ विवणा खरफरस विरत्त किये, यों विविध प्रकार के पपकर्ष मन वचन और काया स बोले. और भी मृषा बोलनेवाले के भेद". कहते हैं-अकुशल, अनार्य, असत्य शास्त्र का पठन करने वाले, हिंसर्प में तत्पर, मन कल्पित कथ वार्ता में तत्पर, और इन में श्रद्धा प्रतीत माननेवाले असत्य वचन बोलते हैं // 7 // इस का फल कहते हैं. ऐसा मृषा वचन बोलने वाले को महाभय होता है, निरंतर वेदना रहती है, दीर्घ काल पर्यंत बहुत प्रकर क नरक तिर्यंच योनिका दुःख भोगना पडता है, इस असत्य वचन से बंधाये हुए पुनर्भव के बंध करने वाले भयंकर दुर्गति में प्राप्त होते हैं. वे मृषा वादी यहां मनुष्य लोक में दीदी, दुरत, परंवश, धन व भोग से वंचित-हित. मित्रादि रहित, दुष्ट भाषा बोलने वाले, बीभत्स वर्ण वाले, कठोर, I+स्पर्शवाल, असमाधिवंत, खराब शरीर के धारक, निश्चम निस्तेन शोभा रहित, निष्फल वचनी, अमान्य नुवादक-बालब्रह्मचारी मुनी श्रीमोलख ऋषिजी - प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदेवमहायजी धालापसादनी *