Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ / अर्थ विक्खेवो,२२ कूडया, 23 कुलमसीय, 24 कंखा, 25 लालप्पण पच्छणाय, 26 आसासणायवसणं, 27 इच्छामुच्छाय, 28 तण्हागिद्धि, 29 नियडि कम्मं, 30 अवरच्छिन्निविय, // तस्स एयाणि एव मादीणि नामधेजाणि हूंति तीसं // 2 // अदिण्णादाणस्म पावकलिकलुस, कम्म बहुलस्स अणेगाइं तंच पुण करोति चोरियं, तकरा, परद्दबहरा, छेयाकय, करण, लहलक्खा, साहसिया. ' लहुसग्गा, अतिमहीत्था, लोभघच्छा दद्दर, उनील,गाय गिडिया, अहिमरा, का कारन 18 उद्वेग उपजान वाला 19 अक्षेप का कारन 2 . प्रक्षेप करना 21 विक्षेप करना 22 कूड 23 कूल में काला करना 24 कांक्षा 25 लाल पाल करना 26 आशामना करना 27 इच्छा अभिलाषा 28 तृष्णा 29 निकाचित कर्मबंध का स्थान और 30 अपारक्षी अर्थात् अन्य की द्रष्टि नहीं बढे वैसा स्थान. यह तीस नाम पाप कर्म के स्थान वाले अदत्त आश्रव के होते हैं // 2 // इम का कौन करता है सो कहते हैं. पर द्रव्य हाण में दक्ष, चोरी करने के आसर के आता, साहसिक, तुच्छ आत्मा, अती इच्छा वाला, लोभग्रस्त, बचन का आडंबर करने वाला, अत्म स्वरूप गोपनं वाला, ठगने में गृद्ध, सन्मुख बनकर घात करने वाला. ऋणलेकर पीछा नहीं देने वाला, भग्न कायको पुनःसांधने वाला राजा का 17 दुष्ट करने वाका, राजा के भंडार तोडकर धन लेकर दुष्ट कर्म करने वाला देशपार किया हुवा ज्ञा.ते बहिष्कार बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोल व ऋषिः *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*