Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ 76 4 अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनिश्री अमे.लख ऋषिजी कुप्पमाणा कुसंठिया कुरुवा किवणायहीणीणसत्ताणं णिच्चंसुख परिवजिया असुहदुक्खभागी, णरगाओ उव्वहिता इहं सावसे सकम्मा // एवं नरग तिरिक्खजोणि कुमाणसत्तंच हिंडमाणा पावंति अणंतकाइ दुक्खाइं पावकारी // 22 // एसो सो पाणवहस्स फलविवागो इहलोइए परलोइए अप्पसुहो बहु दुक्खा महब्भमओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाउ वाससहस्सेहिं मुच्चतिणय अवेदइत्ता अत्थिहु मोक्खाति // एव माहसु णायकुलणंदणो महप्पाजिणो वीरवरणाम, धिजो कहेसीय पाणवहस्स फलविवागं // 23 // एसो सो पाणवहो पावो चडो रुद्दा पाने वाला, बाल, अज्ञानी कुलक्षणी, खण्डित शरीरी, दुर्बल, कुसंघयनी, प्रमाण रहिन शरीर वाला, अशुभ मंस्थान वाला, कुरूप, कृपण, दोन, हीन जाति वाला, हीन सत्व वाला, सदैव मुख रहित, अशुभ, दभांगी, और नरक के शेष कर्म भोगने वाला होता है, या नरक तिर्यंच और कुपनुष्य में परिभ्रमण कराया हुवा पापी अनंत दःख भोगता है. // 22 // इस तरह कहा हुवा प्राणातिपात का फल विपाक इस लोक और परलोक में बहुत दुःख रूप कहा है. वह महाभयकारी कर्म रज से प्रज्वलित बना हुवा, ले दारुण. कर्कश, आसाता से सहस्र वर्ष में विना भोगवे नहीं छूट सके वैसा फल ज्ञातनंदन श्री महावीर वामीने अपने पाटवीय गणधर श्री गौतम स्वामी से कहा है. // 23 // और भी इस अर्थ का विशेष * काक रामवहादुर ढाला मुखदेवसहायजीवालाप्रसादजी *