Book Title: Pramanmimansa
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
View full book text
________________
MARADABosniamwaiaHBITERAHAL
प्रन्धकार का परिचय आचार्य हुए। यह बात उनके जीवन कार्य का और लोक में उसके परिणाम का इतिहास देखने से स्पष्ट होती है।
जिस देश-काल में आचार्य हेमचन्द्र का जीवन कृतार्थ हुआ वह एक ओर तो उनकी शक्तिओं की पूरी कसौटी करे ऐसा था और दूसरी ओर उन शक्तिओं को प्रगट होने में पूरा अवकाश देने वाला था।
RSSBIA
usicsASHARMAdit
यदि जिनपभसूरि ने 'पुराविदों के मुख से सुनी हुई' परम्परा सत्य हो तो कह सकते हैं कि वि० सं० ५०२ (ई० स० ४४६) में लक्खाराम नाम से जो जननिवास प्रख्यात था उस जगह वि० सं० ८०२ (ई० स० ७४६) में 'अणहिल गोपाल' से परीक्षित प्रदेश में 'चाउकड वंश के मोती सम वणराय ने 'पत्तण' बसाया। यह पसन अणहिल्लपुरपाटन के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुआ । इस राजधानी का शासन चारडाओं ने और सोलंकियों ने धीरे-धीरे फैलाया और इसके साथ ही साथ भिन्नमाल ( अथवा श्रीमाल), वलभी तथा गिरिनगर की नगरश्रीओं की यह नगरथी उच्चाधिकारिणी हुई। इस उसराधिकार में समाधानियों-कान्यकुज, उज्जयिनी एवं पाटलिपुत्र के भी संस्कार थे । इस अभ्युदय की पराकाष्ठा जयसिंह सिद्धराज (वि० सं० ११५०-११९९), और कुमारपाल (वि० सं० ११९९-१२२९) के समय में दिखाई दी और पौनी शताब्दि से अधिक काल (ई० स० १०९४-११७३ ) तक स्थिर रही । आचार्य हेमचन्द्रका आयुष्काल इस युग में था, उन्हें इस संस्कार समृद्धि का लाभ प्राप्त हुआ था। वे उस युग से बने थे और उन्होंने उस युग को बनाया ! ___ जयसिंह सिद्धराज के पितामह भीमदेव (प्रथम) (ई० १० १०२१-६५) और पिता कर्णदेव के काल में ( ई० स० १०६४-९४) अणहिलपुरपाटन देश-विदेश के विख्यात विद्वानोंके समागम और निवास का स्थान बन गया था, ऐसा 'प्रभावकचरित' के उलेखों से मालूम होता है। भीमदेव का सान्धि-विग्रहिक 'विप डामर', जिसका हेमचन्द्र दामोदर के नाम से उस करते हैं, अपनी बुद्धिमत्ता के कारण प्रसिद्ध हुआ होगा ऐसा जान पड़ता है। शैवाचार्य ज्ञानदेव, पुरोहित सोमेश्वर, सुराचार्य, मध्यदेश के ब्राक्षण पण्डित श्रीधर और श्रीपति ( जो आगे जाकर जिनेश्वर और बुद्धिसागर के नाम से जैन साधु रूप में
१. ५.. विविधतीर्थकरूप; संपादकः मुनि श्री जिन विजयजीः सिंघी जैन-प्रन्थमाला । २ देखो प्रभावकचरित ( निर्गय सागर ) पृष्ठ १.६-३४६ ।
३ भीमदेव की रानी उदयमती की वापिका-बावड़ी के साथ दामोदर के कुएँ का लोकोक्तिम उदिस्य माता है। इस पर से उसने सुन्दर शिल्प को उतेजन दिया होगा ऐसा प्रतीत होता है
'राणको बाय नै दामोदर कुबो जेणे न जोयो से जीवता मुओ' ( रानी की बावड़ी और दामोदर कुओं जिमने न देखा वह जीते मूभा) देखो प्रवन्ध चिन्तामणि पृ.३०-१४, सिंधी अन ग्रंथमाला और दामोदर' उन के लिए पात्रय ८,६१