Book Title: Pramanmimansa
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
View full book text
________________
प्रस्तावना
संक्षिप्त परिचय के लिए भी एक एक लेख की आवश्यकता हो सकती है। शब्दानुशासन, काव्यानुशासन, छन्दोनुशासन, अमिधानचिन्तामणि और देशीनाममाला----इन ग्रन्थों में उस उस विषय की उस समय तक उपलब्ध सम्पूर्ण सामग्री का संग्रह हुआ है । ये सब उस उस विषय के आकर अन्य हैं। ग्रन्थों की रचना देखते हुए हमें जान पड़ता है कि वे अन्य क्रमशः आगे बढ़नेवाले विद्यार्थीयों की आवश्यकता पूर्ण करने के प्रयल हैं। भाषा
और विशदता इन अन्धों का मुख्य लक्षण है। मूल सूत्रों तथा उस पर की स्वोपन टीका में प्रत्येक व्यक्ति को तद्विषयक सभी ज्ञातव्य विषय मिल सकते हैं। अधिक सूक्ष्मता तथा तफसील से गम्भीर अध्ययन के इच्छुक विद्यार्थी के लिए बृहत् टीकाएँ भी उन्होंने रखी है। इस तरह तर्क, लक्षण और साहित्य में पाण्डित्य प्राप्त करने के साधन देकर गुजरात को स्वावलम्बी बनाया, ऐसा कहें तो अत्युक्ति न होगी। हेमचन्द्र गुजरात के इस प्रकार विद्याचार्य हुए।
__याश्रय संस्कृत एवं प्राकृत काव्य का उद्देश भी पठनपाठन ही है। इन ग्रन्थों की प्रति व्याकरण सिखाना और राजवंश का इतिहास कहना-इन दो उद्देशों की सिद्धि के लिए है। बाबरूप क्लिष्ट होने पर भी इन दोनों कान्यों के प्रसंग-वर्णनों में कवित्व स्पष्ट झलकता है। गुजरात के सामाजिक जीवन के गवेषक के लिए याश्रय का अभ्यास अत्यन्त आवश्यक है।
प्रमाणमीमांसा नामक अपूर्ण उपलब्ध अन्य में प्रमाणचर्चा है जिसका विशेष परिचय आगे दिया गया है।
त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित तो एक विशाल पुराण है । हेमचन्द्र की विशाल प्रतिभा को जानने के लिए इस पुराण का अभ्यास आवश्यक है। उसका परिशिष्ट पर्व भारत के प्राचीन इतिहास की गवेषणा में बहुत उपयोगी है।
योगशाला में जैनदर्शन के ध्येय के साथ योग की प्रक्रिया के समन्वय का समर्थ प्रयास है । हेमचन्द को योग का स्वानुभव था ऐसा उनके अपने कथन से ही मालूम होता है।
द्वात्रिंशिकार तथा स्तोत्र साहित्यिक-दृष्टि से हेमचन्द्र की उत्तम कृतियाँ हैं। उत्कृष्ट बुद्धि तथा हृदय की भक्ति का उनमें सुभग संयोग है।' ____ भारत भूमि और गुजरात के इतिहास में हेमचन्द्र का स्थान प्रमाणों के आधार से कैसा माना जाय ! । भारतवर्ष के संस्कृत-साहित्य के इतिहास में तो ये महापण्डितों की पंक्ति में स्थान पाते हैं। गुजरात के इतिहास में उनका स्थान विद्याचार्य रूप से और राजा प्रजा के आचार के सुधारक रूप से प्रभाव डालने वाले एक महान आचार्य का है।
रसिकलाल छो० परिख
SASRD
--
w
atta
१ देखा डॉ. आमन्दर्शकर ध्रुव की स्यावादमजरी की प्रस्तावना पृ० १८ और २४ ।
१यह लेख बुद्धिप्रकाश पु.६ थे में पृ. ३७७पर गुजराती में छपा है। उसीका यह अनिकल अनुवाद है -संपादक ।