Book Title: Pramanmimansa
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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भाषाटिप्पणानि। प्रथमाध्याय का प्रथमालिक। पृ. ५० नं.
पृष्ठ पं. १ पाणिनि, पिङ्गल, कणाद और अक्षपाद १५ स्वप्रकाश के स्थापन में प्रयुक्त युक्तियों के अन्यों का निर्देश
१६ के आधार का निर्देश २ याचकमुख्य उमास्वाति का परिचय १६ १६ प्रमाण लक्षण में स्वपद क्यों नहीं रखा
दिगम्बराचार्य अकलङ्क के मन्यों का निर्देश १ ११ उसका आचार्यकृत खुलासा ११८ ४ धर्मकीर्वि के कुछ अन्यों का निर्देश ११४ १७ दर्शनशास्त्र में जन धर्मकीर्ति ने धारा५.प्रथम सूत्र की शब्द रचना के आधार
याहि के प्रामाण्य-अप्रामाण्य की चर्चा का ऐतिहासिक दिग्दर्शन १२१ दाखिल की सर उसके विषय में सभी - सना ''मेकी
दार्शनिकों ने जो मन्तब्ध प्रगट किया अर्थ किये हैं उनके मूल का ऐतिहासिक
है उसका रहस्योद्घाटन अवलोकन
२११ १८ सूत्र १.१. ४ की रचना के उद्देश्य ७ जैनपरंपराप्रसिद्ध पांच परमेष्ठिों का
और वैशिष्ट्य का सूचन निर्देश
१ ६ १६ सूत्र १.१.४ और उसकी वृत्ति की हेमचन्द्राचार्य कृत प्रावणनिर्वचन के
विशिष्टता तस्वोपप्लव के आचार्यकृत मूल का निर्देश
।११ अवलोकन से फलित होने की संभावना १४ ३५ ६ शास्त्र-प्रवृत्ति के दो, तीन, और चार
२. संशय के विभिन्न क्षणों की तुलना १४ २२ प्रकारों के विवाद का रहस्य | हेमचन्द्र
२१ प्रशस्तपाद कृत अनध्यवसाय के स्वरूप द्वारा इस विषय में किये गए नैयायिकों
का निर्देश के अनुकरण का निर्देश
३ १७ २२ हेमचन्द्र कृत विपर्य के लक्षण की तुलना १५ २३ १० मीमांसा शब्द के विशिष्ट अर्थ का २३ प्रामाण्य और अप्रामाण्य के स्वतः परतः आधार क्या है ! और उससे आचार्य
की चर्चा के प्रारंभ का इतिहास और को क्या अभिप्रेत है उसका निदर्शन ४२१ स विषय मे दार्शनिकों के मन्तव्य ११ कणादकृत कारणशुद्धिमूलक प्रमाण
का दिग्दर्शन सामान्य लक्षण और उसमें नैयायिक
२४ परोक्षार्थक आमम के प्रामाण्य के वैशेषिक, मीमांसक और बौद्ध द्वारा
समर्थन में अश्वपाद की तरह मन्त्रायुकिए गए उत्तरोत्तर विकास का तुलना
वेद को दृष्टान्त न करके आचार्य स्मक ऐतिहासिक दिग्दर्शन । जैनाचार्यों
हेमचन्द्र ने ज्योतिष शास्त्र का दृष्टान्त के प्रमाण लक्षगों की विभिन्न शब्द
दिया है उसका ऐतिहासिक दृष्टि से रचना के आधार का ऐतिहासिक
रहस्योद्घाटन
२८ १२ अवलोकन । जैन परंपरा में हेमचन्द्र के
२५. आचार्य द्वारा बीड-नैयायिकों के प्रमाण संशोधन का अवलोकन
५ १ लक्षण का निरास १२ लक्षण के प्रयोजन के विषय में दार्श- २६ जैन परंपरा में पाई जानेवाली आगमिक
निकों की विप्रतिपत्ति का दिग्दर्शन ८६ और तार्किक हान-चर्चा का ऐति१३ सूत्र १.१.२ की व्याख्या के आधार
हासिक दृष्टि से विस्तृत अवलोकन १६ २६ की सूचना
८१६ २७ वैशेषिक संमत प्रमाण द्वित्ववाद और १४ अर्धं के प्रकारों के विषय में दार्शनिको
प्रमाणवित्ववाद का निर्देश २३ - के मतभेद का दिग्दर्शन
है ५ २८ प्रत्यक्षवटक अक्षशब्द के अर्थों में