Book Title: Pramanmimansa
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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भाषाटिप्पणानां विषयानुक्रमणिका पृ० पं० ..
पृष्ट १० दर्शिन् विशेषण का प्रयोग किया है
व्यतिरेकविषयक जैन-बौद्ध मन्तव्यों का इससे धर्मकीर्ति के ऊपर उनके आदर
समन्वय की सूचना
८५२६७६ पक्ष का लक्षण, लक्षपागत पदी का ७४ 'प्राणादिमत्वात् इस हेतु की सत्यता के
फल, पक्ष के आकार और प्रकार इन बारे में इतर दार्शनिको के साथ
बातों में दार्शनिकों के मन्तव्यो का घौद्धों के मतभेद का दिग्दर्शन ८६ १ ऐतिहासिक अवलोकन
८७ २६ ७५ हेतु के नियामत के बारे में
ना और उपयोग के बारे कोलि का जो मा हेमचन्द्र ने उद्धृत
में नैयायिक और जैन-बौद्ध मन्तव्यों किया है उसकी निर्मूलता के बारे में
का दिग्दर्शन
६० १५ शंका और समाधान । अन्वय और
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द्वितीयाध्याय का प्रथमासिक । ७८ वैदिक, बौर और जैन परंपरागत
निको की विप्रतिपत्ति का ऐतिहासिक परार्यानुमान की चर्चा का इतिहास ६२ । अवलोकन ७९ परार्थानुमान के प्रयोग प्रकारों के बारे
८४ दार्शनिकों के असिद्धविषयक मन्तव्य __में वैदिक, बौद्ध और जैन परंपरा के
का तुलनात्मक वर्णन
८ १६ मन्तव्यों की तुलना
६२२० ८५ दार्शनिकों के विरुद्धविषयक मन्तव्य ८पार्थानुमान में पश्च प्रयोग करने
न का तुलनात्मक दिग्दर्शन दिग्दर्शन
२५ करने के मतभेद का दिग्दर्शन । हेम
८६ अनेकान्तिक के बारे में दार्शनिकों के चन्द्रद्वारा अपने मन्तव्य की पुष्टि
मतभेदों का ऐतिहासिक दृष्टि से तुलनामें वाचस्पति का अनुकरण ६३ १७ स्मक विवेचन १ परार्थानुमान स्थल में प्रयोग परिपाटी
७ दृष्टान्ताभास के निरूपण का ऐतिहासिक के बारे में दार्शनिकों के मन्तव्यों का . दृष्टि से तुलनात्मक अवलोकन १०३ २६ दिग्दर्शन
६४ १४ सदुषण-दृषणाभास का ऐतिहासिक दृष्टि ८२ अनुमान के शब्दात्मक पाँच अवयवों
से तुलनात्मक विवेचन के वर्णन में हेमचन्द्र कृत अक्षपाद के
यादकथा का इतिहास
११५ २८ अनुकरण की सूचना
६६. निपद-स्थान तथा जय-पराजय व्यवस्था ८ हत्याभास के विभाग के बारे में दार्श
का तुलनात्मक वर्णन
२१६ १४
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वृद्धि पत्रक। ६१ निर्विकल्प के बारे में दादानिकों के ६५ हेमचन्द्र की प्रमाण-फल व्यवस्था ___ मन्तब्य की तुलना
१२५ १ में उनका शैयाकरणत्व १२ ज्ञान की स्वप्रकाशकता के विषय में
१६ आत्ममत्वच का विचार १३६ ११ दार्शनिकों के मन्तध्य
१३० ७ ६७ अनुमानप्रमाण का ऐतिहासिक दृष्टि १३ प्रत्यक्ष विषयक दार्शनिकों के मन्तव्य १३२ ७ से अवलोकन
१३८ १ १४ प्रतिसंख्यान
१३५ ३० ६८ दिछनाग का हेतुचक