Book Title: Pramanmimansa
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
View full book text
________________
immmmmPINPARENERAR
प्रन्थकार का परिचय से जो सुन्दर लाता है, जहाँ पुराणकवियों द्वारा प्रयुक्त शब्द दृष्टान्तरूप से उल्लिखित किए जाते हैं।"
A
M
ATHAMATKareentinointre
हेमचन्द्र ने राजकीय विषयों में कितना भाग लिया होगा यह जानने के लिए नहीं जैसी शेय-सामग्री है। वे एक राजा के सम्मान्य मित्र तुल्य और दूसरे के गुरुसम थे । राज दरबार में अग्रगण्य अनेक जैन गृहस्थों के जीवन पर उनका प्रभाव था। उदयन और वाग्भटादि मंत्रियों के साथ उनका मान सम्बन्ध था । ऐसी वस्तुस्थिति में कुछ लोग हेमचन्द्र को राजकीय विषयों में महत्व देते हैं। परन्तु राजनीतिक कही जा सके ऐसी एक ही बात में परामर्शदाता के रूप से हेमचन्द्र का उल्लेख 'प्रबन्धकोश' में आता है। जैसे सिद्धराज का कोई सीधा उत्तराधिकारी न था वैसे ही कुमारपाल का भी कोई नहीं था ! इसलिए सिंहासन किसे देना इसकी सलाह लेने के लिए वृद्ध कुमारपाल वृद्ध हेमचन्द्र से मिलने के लिए उपाश्रय में गया, साथ में क्साह आम नामक जैन-महाजन भी था । हेमचन्द्र ने द्रोहित्र प्रतापमल्ल को ( जिसकी प्रशंसा गण्ड भाव बृहस्पति के शिलालेख में भी आती है ) धर्म स्थैर्य के लिए गही देने का परामर्श दिया क्योंकि स्थापित 'धर्म' का अजयपाल से हास सम्भव है। जैन-महाजन वसाह आभड़ ने ऐसी सलाह दी कि 'कुछ भी हो पर अपना ही काम का' इस कहावत के अनुसार अजयपाल को ही राज दिया जाय । र
इसके अलावा हेमचन्द्र ने अन्य किसी राजकीय चर्चा में स्पष्टतः भाग लिया हो तो उसका प्रमाण मुझे ज्ञात नहीं ।
सिद्धराज को हेमचन्द्र कितने मान्य थे इसका कुमारपाल प्रतिबोध में संक्षेप से ही वर्णन है जब कि कुमारपाल को हेमचन्द्र ने किस तरह जैन बनाया इसके लिए सारा ग्रन्थ ही लिखा गया है। ग्रन्थ के अन्त में एक श्लोक है...“प्रभु हेमचन्द्र की असाधारण उपदेश शक्ति की हम स्तुति करते हैं, जिन्होंने अतीन्द्रिय ज्ञान से रहित होकर भी राजा को प्रबोधित किया ।"
'प्रभावचरित' के अनुसार हेमचन्द्र वि० सं०१२२९ ( ई० सं० ११७३ ) में 23 वर्ष की आयु में दिवंगत हुए।
।।। ...danleyapreparamananews
inwwwwwm
हेमचन्द्र विरचित अन्धों की समालोचना का यह स्थान नहीं है। प्रत्येक ग्रन्थ के , अन्यशाभिमागुम्फाकुलमहासको । पट्टिकापट्टसंघातलिख्यभामयदपजे ।। शब्दयुरपतवेऽन्योन्यं कृतोहापोहबन्धुरे । पुराणकसिमष्टान्तीकृतशब्दके । प्रमोवासविधासेऽत्र भारतीपिसमन्दिरे । बीहेमचन्द्रसूरीमामास्थाने सुस्थवादिदे ।।
प्रभावक परित पृ.३१४ लो- १९३-९४ २ इस मन्त्रणा का समाचार हेमचन्द्र के एक विधी शिष्य बालचन्द्र द्वारा अजयपाल को मिला था। देखो, प्रबन्धकोच पृ. ९८ । .३ "स्तुमंस्त्रिसन्ध्यं प्रभुमरेरमन्यतुल्यामुपधेशतिम् । अतीन्दियामविवर्जितोऽपि यशोणिमध्यचित्त प्रबोधन । कुमारपाल प्रतिषः पृ. ४७६ ।