Book Title: Pramanmimansa
Author(s): Hemchandracharya, Sukhlal Sanghavi, Mahendrakumar Shastri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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प्रस्तावना पाने की शक्ति मानी गई है और दूसरी दृष्टि यह है कि जनपक्ष निरपवाद' रूप से सर्वज्ञवादी ही रहा है जैसा कि न बौद्ध परम्परा में हुआ है और न वैदिक परम्परा में । इस कारण से काल्पनिक, अकाल्पनिक, मिश्रित यावत् सर्वज्ञत्व समर्थक युक्तियों का संग्रह मकेले जैन प्रमाणशास्त्र में ही मिल जाता है । जो सर्वज्ञस्व के सम्बन्ध में हुए भूतकालीन बौद्धिक व्यायाम के ऐतिहासिक अभ्यासियों के तथा साम्प्रदायिक भावना वालों के काम की चीज है ।
२. भारतीय प्रमाणशास्त्र में हेमचन्द्र का अर्पण परम्परा प्राप्त उपर्युक्त तथा दुसरे अनेक छोटे बड़े तत्वज्ञान के मुद्दों पर हेमचन्द्र ने ऐसा कोई विशिष्ट चिंतन किया है या नहीं और किया है तो किस किस मुद्दे पर किस प्रकार है जो जैन तर्क शास्त्र के अलावा भारतीय प्रमाण-शास्त्र मात्र को उनकी देन कही जा सके । इसका जबाब हम हिंदी टिप्पणों में उस उस स्थान पर ऐतिहासिक तथा तुलनास्मक दृष्टि द्वारा विस्तार से दे चुके हैं। जिसे दुहराने की कोई जरूरत नहीं । विशेष जिज्ञासु उस उस मुद्दे के टिप्पणों को देख लेवें।
सुखलाल।
ग्रन्थकार का परिचय ।
भारतवर्ष के इतिहास को उज्ज्वल करने वाले तेजस्वी आचार्यमण्डल में श्री हेमचन्द्राचार्य प्रतिष्ठित हैं। अपनी जन्मभूमि एवं कार्यक्षेत्र के प्रदेश की लोकस्मृति में उनका नाम सर्वदा अलुच रहा है। उनके पीछे के संस्कृत पण्डितों में उनके अन्थों का मादर हुआ है और जिस सम्प्रदाय को उन्होंने मण्डित किया था उसमें वे 'कलिकालसर्वज्ञ' की असाधारण सम्मान्य उपाधि से विख्यात हुए हैं।
निरुक्तकार यास्काचार्य प्रसंगवशात् भाचार्य शब्द का निर्वचन करते हुए कहते है कि 'आचार्य क्यों ! आचार्य भाचार ग्रहण करवाता है, अथवा आचार्य अर्थों की बद्धि करता है या बुद्धि बढ़ाता है।'' भाषा शास्त्र की दृष्टि से ये व्युत्पचियाँ सत्य हो या न हों, परन्तु आचार्य के तीनों धर्मों का इसमें समावेश होता दिखाई देता है। आज कल की परिभाषा में इस प्रकार कह सकते हैं कि आचार्य शिष्यवर्ग को शिष्टाचार तथा सद्वर्तन सिखाता है, विचारों की वृद्धि करता है और इस प्रकार बुद्धि की वृद्धि करता है, अर्थात् चारित्र तथा बुद्धि का जो विकास कराने में समर्थ हो वह आचार्य । इस अथ में श्री हेमचन्द्र गुजरात के एक प्रधान
१ टिप्पण पृ० २७. पं० ११
२ आचार्यः कस्मात् ? आचार्य आचार ग्राहयति, भाचिनोत्लान् , सचिनोति बुद्धिमिति का-१०१-४, पृ. ६२(बौ. सं. प्रा. मीरीज)।