Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 8
________________ ३ च सरंतो, फलकंखी कुणश् अजत्तहं ६ ॥ १६ ॥ बहमदसमवालसाणं, मासझमासखमणाणं । तिगरपसुको लहर, सित्तुजं संनरंतोष ॥१७॥ बढेणं जत्तेणं, अप्पाणेणं तु सत्त जत्ताई। जो कुण सेत्तुंजे, तश्यनवे लहश् सो मुक्खं ॥१७॥ अवि दीस लोए, नत्तं चश्ऊण पुमरीयनगे। सग्गे सुहेण वच्चश्,सीलविहुणो विहोऊणं ॥१५॥ बत्तं जयं पमागं, चामर निंगाण थालदाणेण । विजाहरो थ हवइ, तह चक्की होइ रहदाणा ॥२०॥ दस वीस तीस चत्ताल-पन्नासा पुप्फदामदाणेण ।लहश्चनबबट्टमदसम वालस फलाई ॥२१॥धूवे पक्खुववासो, मासकमणं, कपूरधूवम्मि । कित्तियमासकमणं साहु पमिलानिए सहइ ॥२५॥ नवि तं सुवन्ननूमी-जूसणदाणेण अन्नतिजेसु । जं पावर पुन्नफलं, पूया न्हवणेण सित्तुंजे ॥२३॥ कंतार चोर सावय-समुह दारिद रोग रिउ रुद्दा। मुञ्चति अविग्घेणं, जे सेत्तुंगंधरंति मणे ॥२४॥ सारावली पयन्नग-गाहासूअहरेण

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