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अच रहा सम्बत् १४११ का रचना काल । इस रचना सम्बत के सम्बन्ध में सभी विद्वान् एक मत है। श्री नाइदाजी ने प्रधुम्न चरित के रचनाकाल का विवेचन करते हुए लिखा है कि संवत् १८११ वाला पाठ सही है किन्तु उनका कहना है कि बदी पंचमी सदी पनगी और नमी इन तीन दिनों में स्वाति नक्षत्र नहीं पड़ता। डा० माताप्रसाद जी ने गणित पद्धति के आधार पर जो तिथि शुद्ध करके भेजी है वह संपत् १४१२ भादवा सुदी ५ शनिवार है। सचे रिपोर्ट के निरीक्षक रायबाहदुर स्वर डा हीरालाल ने अपनी रिपोर्टः २ में लिखा है कि संवत् १४११ भादवा बुढी ५ शनिवार का समय ठीक मालूम देता है। लेकिन उनका भी बुदि का उल्लेख नवीन गणना पद्धति के अनुसार ठीक नहीं बैठता है । इसलिए उन सभी दलीलों के आधार पर संवत् १४११ - भादत्रा सुदी ५ शनिवार वाला पाठ ही सही मालूम देता है । प्रद्युम्न चरित में जो 'भादव दिन पंचमी सो सार पाठ है उसके स्थान पर संभवतः मूल पाठ 'भादव सुदी पंचमी सो सारु' यद्दी होना चाहिये ।
प्रद्युम्नचरित के पूर्व का हिन्दी साहित्य हिन्दी के सुप्रसिद्ध विद्वान् पं. राम चन्द्र शुक्ल नेदस वीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी तक के काल को हिन्दी साहित्य का आदिकाल माना है । शुक्लजी ने इस काल की अपभ्रंश और देशभाषा-काव्य की १२ पुस्तके इतिहास में विवेचनीय मानी है। इनके नाम ये हैं (१) विजयपाल रासो (२) हम्मीर रासो (३) कीर्तिलता (४) कीर्तिपताका (५) खुमानरासो (६) वीसलदेवरासो (3) पृथ्वीराजरासो (क) जयचन्द्रप्रकाश (8.) जयमयंक जय चन्द्रिका (१०) परमाल रामी (११) खुशरों की पहेलियां और (१२) विद्यापति पदाबलि | उनके मतानुसार इन्हीं बारह पुस्तकों की दृष्टि से श्रादि काल का लक्षण निरूपण और नामकरण हो सकता है । इनमें से अन्तिम दो तथा 'बीसलदेवरालो' को छोड़कर शेष सब प्रथ वीर रसात्मक हैं । अतः श्रादिकाल का नाम वीरगाथा काल ही रखा जा सकता है।
किन्तु शुक्ल जी ने हिन्दी साहित्य के आदिकाल के जिस रूप का १. हिन्दी अनुशीलन वर्ष ६ अंक १-४
२. He wrote the work in Samvat 1411 on Saturday oth of the dark of Bhava inonth which on culoulations regnlarly Corresponds to Saturday the Oth August 1364 A. D.
Search Report 1923-25 P-17.