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उवसंत मनि भयउ उछाहु, दीनी कन्या ठयहु विवाह |
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बहु भगति बोल सतिभाइ, फुरिंग विजाहरू लागइ पाइ ॥ २२३॥
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अरजुन वह वीरू जउ जाइ, तिहि वरण जैरहु पहुत श्राह ।
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तिहिसउ जुझ अपूरव होइ, कुसमवाण सर आपइ सोइ || २२४ ॥
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फुगि सो वीरू विउरण खराा गयउ विलतरंग सिरि उभउ भयउ
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विरे तमाल तर हइ जहा, खरण भयरद्ध सपतउ तहां ॥ २२५॥
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फटिक - सिला बयठी बर नारि, जपइ जाप सो वह मझारि ।
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तउ विजाहर पुछइ मयर, वरण मा बसइ गरि यह कम्वणु ॥२२६॥
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तउ वसंत मन कहइ विचारि, रतिनामा यह नूचइ नारि ।
प्रति सरूप सुहनाली नया, लेइ विवाहि कुम्बर परदवणु ॥ २२७॥
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तब मरण मन भी उछाहु, दीनी कुवरि आढए विवाहु ।
फुरिण सो मया सपतउ तहा, हहि सयपंच सहोयर जहा ||२२८ ॥
( २२३) १. तव वसंत ( ख ) २. उद्या ( ख ) ३. वोधी (क) ४. भिखि (क) ५. लागड (क)
(२२४) १
(क) २. वीरजय ( क ) जनि ( ) ४. महतो (क) तिहस (क) तिहिसिह (ख) ५. होइ (क) ६. श्राफ (ख)
जग (क) तलि
( २२५) १. बलि खा (क) २. विरख लता (कख) ३. (ख) ४. विरख (क) विरखु ( ख ) ५. तमालह (क) तमास ( ख ) ६. हिये (क) ७. पडतो (क) सपराउ (ख)
( २२६) १. सो (ख) २
(ख) सो (क)
( २२७ ) १. वलि वसंत (क) २. मनि ( क ) ३. करइ (क) ४. बीजी (क)
५. सुविनाली ( क ) १. मयण ( कल )
( २२८ ) १. तबहि (कख) २. भयो (कख) ३. मोठी (कख) ४. तर उ (क) आढयो (ख) ५. खइ जइ (क) जहि सह (ख)
२२४ - मूल प्रति में सिहिस शुरु के स्थान पर लिहिउ