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( ११७ ) सयल कुटम मनि भयउ उछाहु, कुम्वर मयण कउ भयउ विवाहु । दइ भावरि हथलेव कीयउ, पाणिगहणु इम्ब कुवरहि लयउ ॥५६५।।
भयउ विवाहु गयउ घर लोगु, करइ राजु बहु विलसह भोगु । । देखित सतिभामा गहवरइ, सतिसालु बहु परिहसु करइ ॥५८६॥
सत्यभामा द्वारा विवाह का प्रस्ताव लेकर
पाटस्य के राजा के पास दूत भेजना तउ सतिभामा मंत्रु पाठयउ, दिजु बेग खेयउ पाठयउ । रयण सचउ पाटण तिहि ठाइ, रयणचूलु तहि निमसई राउ ॥५८७।। विज्जु वेग तहि विनवइ सेव, सतिभामा हो पठयो देव । रविकारात सिह करम सनेहुँ, धीय सुई परिभानही देहु ॥५८८।।
भानुकुमार के विवाह का वर्णन सयल राय विद्याधर मिलहु, बहुत कलयल सिंह द्वारिका चलहु । बहुत नयर मह करइ उछाह, भानकुवर जिम होइ विवाहु ॥५८६।। --.-- - -
--- -- - - . -- (५८५) १. भारि (ख) भवरि (ग) २. पाणिग्रहण जब कुवरह भया (ग)
(५८६) भयो विवाह लोग धरि जाइ (ग) २. करहि राज विलसहि बह भाय (ग) ३. देखन (ग) ४. परजलो (ग) ५. कि (ख ग) ६. दुखि परहसि भरी (ग)
(५८७) १, मंतु (ख) २. अरठयउ (ख) परद्वयो (ग) ३. विश्णु वेगु सरह पाठयड (M) विजद विर्ग जोइण पायो (ग) ४. रम संभु पाटरगपुर ठाउ (ख) ५. निवसइ (ख) लगा वंक तिहहि ले ग्राउ (ग) मूलपाठ-विमा
(५८८) चाल्यो इतु पवन मनुलाइ. वेगि पहता खिरण महि जाद ।
यह पाठ प्रथम द्वितीय चरण के स्थान में है तथा मूल प्रति का प्रथम द्वितीय धरण गति में तृतिय चतुर्थ चरण है।
(५८६) १. विधापर तुम्हि मिला खुणेह, धोय सुयंवर मानक बेह
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