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संसयहरु फुणि कहइ सभाउ, भरहलेत सो पंचमु ठाउ ।। सोरठ देस वारमझ नयरु, तहि समीपु हइ न दीसह अबरु ॥५६६।। तह स्वामी महमहण नरेनु, वर्भ नेम सो करइ असेसु । वहु गुणवंत भञ्ज तसु तरणी, तासु नाउ कहीए रूपिणी ॥५६७।। ताहि वर उपणा उ खत्री मयगु, नवंत जागाइ सब कम्वरम् । तासु के रूप न पूज३ कोइ, करई राज धररिग मा सोइ ॥५६८।।
देव का नारायण की सभा में पहुँचना निमुरिंग वयण मुर वइ गोनहा, सभा नारायण बइठो तहा । सुरमणि रयगजडिउ जो हारु. सोविगत प्राविउ अविचारु ।। ५६६11
. देव द्वारा अपने जन्म लेने की बात बनलाना फुरिंग रवि सुर यई लागउ कहण, निसुग्पि वयगा नरवइ महमहा। जिहि तु देइ अनूपम हारु, हउ कुखि लेउ अवतारु ॥६००॥ .. श्रीकृष्ण द्वारा सत्यभामा को हार
देने का निश्चय करना तउ मन विभउ जादउराउ, मन मा चित करइ मन भाउ । चंद्रकांति मगि दिपई अपारु, मतिभामा हियह आपहु हारु ।।६०१।।
.-.- --....- -.. ..---- -.- -. -.. (५६६) १. सोसाइरू (ग) २. पूचइ राज (ख) भूचा तिहि ठाई (ग) मूलपाठ भूवैशाउ ३. हारमाइ (स्य) ४, मूलपाठ देसु ५. पूजइ (ग)
(५६७). १. सन महमहन राउ नरेसु (ग) २. नारि (ग) (५६८) १. दिलसहि अहि सोइ (ग)
(५९९) १. देव नारायशु कहै विचारु (ग) प्रथम तथा द्वितीय चरण के स्थान में निम्न पाठ है-परववशु बीटा बट्टा पासि, पूरब नेह चितु भरया उल्हासि (ग)
(६००) १. जिमु तिय के कह गलि पासिहि हारु (ग) (६०१) १. विसमा (ग) २. परि भाव (ग) . . . . .. ..