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श्रीकृष्ण द्वारा रूपचन्द को छोड़ देना तव हसि माधवकीयउ पसाउ, वाघिउ छोडिउ मनधरि भाउ। मयरद्ध हसि प्राकउ भरिउ, फुणि रूपिणि पह घर ले चल्यउ ॥६५२।।
रूपचन्द और रुक्मिणि का मिलन भेटी जाइ वहिणि पापणी, बहु तक मोहु धरयो रुक्मिणी । वहु आदर सीझइ ज्योनार, अमृत भोजन भए अहार ॥६५३॥ भायउ वहिणि भारिणजे भले, भयउ षेमु जइ एकत मिले । निसुणि बयण तव भयउ उछाहु, दीनी कन्या भयउ विवाहु १६५४
प्रद्युम्न एवं शंबुकुमार का विवाह हरे वंस तव मंडप व्ये, बहुत भांति करि तोरण रए । छपनकोटि जादम मन रले, दोउ कुवर विवाहण चले ॥६५५॥
(६५२) १. करि मनिचाउ (ग) २. रुपचन्द राज (ग) ३. मराधा हप्ति अंको भरध (ग) ४. का (ग)
(६५३) १. बहूता मोहु कर रुकमिणी (ग) बहुत सनेहु परिउ रुकमिणी (ख) २. कोजहि जीमणवार (क) साजइ जवनार (ख) रची जडणार (ग)
(६५४) १. भाई बहिण भाणेजे भले (क) मिले (ख) पाए पहण भगाइ तुम्ह भले (ग) २. भली सरी जो खोममिले (ग) ३. दुयो (ग)
(६५५) १. का {ग ख) २. रोपिया (ग) ३. विवाहण (क ख ग) मूलपात्र 'विमारणा' ग प्रति में निम्न पाठ अधिक है -
रूपचन्द सिव वोलह वारिंण, दोर कन्या वेब प्राणि (ग)