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(६२) तू मेरे केवल एक ही पुत्र हुआ और तुझे भी होते ही धूमकेतु हर ले गया । हे पुत्र ! तू कनकमाला के घर पर बड़ा हुआ जिस कारण मैं तेरे बचपन का सुख भी नहीं देख सकी।
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(६८३) फिर आनंद प्रदान करने वाले तुम आये और पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान तुमने कुल को प्रकाशित किया । तुमने सम्पूर्ण राज्य-भोग प्राप्त किये। अब इस भूमि पर कौन रहेगा ?
प्रद्युम्न द्वारा माता को समझाना
(६४) माता के वचन सुनकर प्रद्युम्न ने उत्तर दिया कि यह सुन्दर शरीर काल के रूट जाने पर समाप्त हो जावेगा ।
(६८) इसलिये हे माता अब विवाद मत करो तथा माया, मोह और मान का परिहार करो। व्यर्थ शरीर को दुःख मत दो। कौन मेरी माता है और कौन तुम्हारा पुत्र है ?
(६६) रहट की माल के समान यह जीव फिरता रहता है और कभी स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी पर अवतरित होता रहता है। पूर्व जन्म का जो संबंध होता है उसी के आधार पर यह जीव दुर्जन सज्जन होकर शरीर धारण करता रहता है ।
(६=७) हमारा और तुम्हारा सम्बन्ध पूर्व जन्म में था। उसी को कर्म ने यहां भी मिला दिया है। इस प्रकार माता के मन को समझाया | फिर रुक्मिणी अपने घर पर चली गई ।
प्रद्युम्न का जिन दीक्षा लेकर तपस्या करना
(६) माता रुक्मिणी को समझा कर फिर प्रयुम्न नेमिनाथ के पास जाकर बैठ गये। उनने द्वेष क्रोध आदि को छोड़कर पंचमुष्टि केश लौंच किया ।
( ६-६ ) उन्होंने तेरह प्रकार के चारित्र को धारण किया तथा दश लक्षण धर्म का पालन किया । बाईस प्रकार के परी को उन्होंने सड़न किया जिसके कारण बाह्य एवं अभ्यमंतए शरीर क्षीण हो गया।