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(६०३) मुनि के आगमन एवं श्रीकृष्ण की जरवकुमार के हाथ से मृत्यु को कौन रोक सकता है ? मावु, सुभानु, शंत्रुकुमार, प्रद्युम्नकुमार एवं आठ पट्टरानियां संयम धारण करेंगी ।
(६७४) गणधर के पास बात सुनकर तथा द्वारिका का निश्चित विनाश जानकर द्वीपायन ऋषि तप करने के लिये चले गये तथा जरदकुमार भी बन में चला गया ।
प्रद्युम्न द्वारा जिन दीक्षा लेना
(६७५) दशों दिशाओं में बहुत से यादव इकट्ठे हो गये और संयम व्रत लेने के लिये भगवान नेमिनाथ के पास गये । प्रद्य मनकुमार ने जिन दीक्षा ली तो नारायण चिंतित हुये ।
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प्रद्युम्न द्वारा वैराग्य लेने के कारण श्रीकृष्ण का दुखित होना
(६७६) श्रीकृष्ण शोकाकुल होकर कहने लगे हे मेरे पुत्र ! हे मेरे पुत्र प्रद्युम्न ! तुम्हारे में आज कौनसी बुद्धि उत्पन्न हुई है ? तुम द्वारिका लेश्रो और राज्य का सुख भोगो ।
(६७७) तुम राज्य कार्य में धुरंधर हो, जेष्ठ पुत्र हो, तुम्हें बहुत विद्याबल प्राप्त है। तुम्हारे पौरुष को देव भी जानते हैं। हे पुत्र प्रद्यन्न ! तुम अभी तप मत धारण करो ।
(६) कालसंवर तुम्हारा साहस जानता है। तुमने मुझे रण में बहुत व्यथित किया । तुमने मेरी रुक्मिणी को हरा था तथा बहुत से सुभदों को पछाड़ दिया था |
(६७६) नारायण के वचन सुनकर प्रद्युम्न ने उत्तर दिया कि राज्य कार्य एवं घर बार से क्या करना है, संसार तो स्वप्न के समान है।
(६०) धन, पौरुप एवं अपार बल का क्या करना है। माता पिता अथवा कुटुम्ब किसके हैं। एक ही घड़ी में न हो जायेंगे। आयु के नष्ट हो जाने पर कौन रख सकता है ?
रुक्मिणी का विलाप करना
( ६- १) नारायण को दुखित देख फिर रुक्मिणी वहां दौड़ी आई | वह करुण विलाप करके चिल्लाने लगी तथा कहने लगी कि हे पुत्र किस कारण संयम धारण कर रहे हो ?