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देखि डाम मन विभउ राउ, नीघरण जाति करउ किम घाउ । धणक सधाणि वाण जव हणे, तहि पह अवर मिले चउगुणे ॥६४७॥
प्रद्युम्न और रूपचन्द के मध्य युद्ध कोपारुढ मयण तव भयउ, चाउ चडाइ हाथ करि लयउ। अग्निवाणु दीपउ मुकराइ, जुझत षत्री चले पलाइ ॥६४८।। भागी सयन गयउ भरिवाउ, बाघिउ मामू गले दई पाउ । लइ कन्या सबु दलु पलगाइ, द्वारिका नयरि पहुते पाई ॥६४६॥ रूप रावलइ पहृतो तहा, राउ नरायण बइठो तहा । रूपचंदु हरि दीठउ नयरण, हमई लाभु कियउ नारायः ॥६५०॥
रूपचन्द को पकड़ कर श्रीकृष्ण के सम्मुख उपस्थित करना तव हसि मदसूदनु इम कहइ, इह भाणेजु तिहारउ अहइ । इहि विद्यावलु पवरिषु घाउ, जिरिए जीतिउ पिता प्रापरणउ ।।६५१॥
(६४५) १. विलखो (क) चिता (ग) विभिउ (ख) २. निरपण (ग) ३. किउ (क) को (म) ४. घशुष बाण ले हाथि हिणइ (ग) ५. परि अधिक पजगणे गिण (ग)
(६४८) १. मुकलाइ (क ख ग) (६४६) १. रूप { } मामा (ग) (६५०) १. रूपचंय (क ग) २. इस के बहुतु किया महमहन्छ (ग)
(६५१) १. या भागजा तुहारा प्रहइ (ग) २. इस सुप्पत्त, कमिरिण सा (ग) नोट-- यह छाप (क) प्रति में नहीं है।
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