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( १६१) 4 (१७२) प्रयुम्न के वचनों को सुनकर राजा सन्तुष्ट हुना तथा मदनकुमार पर कृपा की । जब यमसंबर ने उसे वीड़ा दिया तो हाथ फैलाकर प्रधम्न ने उसे ले लिया ।
प्रद्य म्न का युद्ध भूमि के लिए प्रस्थान
(१७३) श्राज्ञा मिली और प्रद्युम्न चतुरंगिनी सेना को सजा कर रवाना हो गया । बहुत से नगारे, भेरी और तुरही बजने लगे । कोलाहल मच गया एवं उछलकूद होने लगी तथा ऐसा लगने लगा कि मानों मेव ही असमय में खूब गर्जना कर रहा हो । रथ सजा लिये गये। हाथी और घोड़ों पर हौदे तथा काठियां रख दी गयी । जब तैयार होकर प्रशम्न चला तो आकाश में सूर्य भी नहीं दिख रहा था।
(१७४) अध प्रद्युम्न के चरित्र को ध्यान पूर्वक सुनिये कि जिस प्रकार उसने राजा सिंहरथ को जीता ।
(१७५) कुमार प्रद्युम्न ने जब प्रयाण किया तो सारे जगत ने जान लियर। आकाश में रेत उछलने लगी | सजे हुये रथों के साथ जो बाजे बज रहे थे वे ऐसे लग रहे थे कि मानों भादों के मेघ ही गर्ज रहे हो । उसके प्रवल शत्रुओं के समूह को नष्ट करने वाले अनगिनत योद्धा चले। वे सय भीर एकत्र होकर समराङ्गण में जा पहुँचे ।।
(१७६) कुमार प्रद्य म्न को प्राता हुआ देखकर सिंहरथ कहने लगा यह बालक कौन है ? इस बालक को रण में किसने भेज दिय है? मुझे इसके साथ युद्ध करने में लज्जा अाती है ।
११७७) बार बार में मुड़ २ कर राजा ने कहा कि वह इस बालक पर किस प्रकार प्रहार करे । उसको देखकर उसके हृदय में ममता उत्पन्न हुई और कहा कि हे कुमार ! तुम वापिस घर चले जावो ।
प्रद्युम्न एवं सिंहस्थ में युद्ध
(१७८) राजा के पचन सुनकर प्रद्य म्न क्रोधित हुआ और कहने लगा मुझ को हीन वचन कहने वाले तुम कौन हो ? बालक कहने से कोई लाभ नहीं है अब मैं अच्छी तरह से तुम्हारा नाश करूगा ।