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तृतीय सर्ग
यमसंबर द्वारा सिंहरथ को मारने का प्रस्ताव
(१६४) वां एक सिंहरथ नामका राजा रहता था उससे यमसंवर का बड़ा विरोध चलता था । यममंत्रर ने उपाय सोचा कि इसको किस प्रकार समाप्त किया जाये ।
(१६४) उसने पांच सौ कुमारों को बुलाया और उनसे कहा कि सिंहस्थ को ललकार कर युद्ध में जीतो । जो सिंहरथ से युद्ध करने का भेद जानता है वह शीघ्र आकर युद्ध का बीडा ले ले 1
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(१६६) कोई भी कुमार पास नहीं आया । तत्र इंसकर प्रद्युम्न ने बीड़ा लिया। उसने कहा कि हे स्वामी मुझ पर कृपा कीजिये। मैं रा में सिहरथ को जीतूंगा।
(१६) तब राजा ने सत्यभाव से श्रभी तुम्हारा अवसर नहीं है। तुम अभी जिससे कि मैं तुमको आना हूँ ।
कहा कि हे कुमार तुम बच्चे हो युद्ध के भेदों को नहीं जानते
(१६८ ) ( प्रद्युम्न ने कहा ) -- बाल सूर्य आकाश में उससे कौन युद्ध कर सकता है। सर्प का बच्चा भी यदि विष को दूर करने के लिये भी कोई मणिमंत्र नहीं है ।
होता है लेकिन इस ले तो उसके
( १६६) लिंनी बालसिंह को पैदा करती है वही हाथियों के झुंड को काल के समान है । यदि यूथ को छोड़कर अर्थात् अकेलासिंह भी बन को चला जाये तो उसे कौन ललकार सकता है ।
(१७) अम्ति यहि थोड़ी भी हो तो उसका पता किसी को भी नहीं लगता । किन्तु जब वह रौद्र रूप धारण करके जलती है तो पृथ्वी को भी जलाकर भस्म कर डालती है ।
(१७१) वैसे ही यद्यपि मैं बालक हूँ किन्तु राजा का पुत्र हूँ । मुझे युद्ध करने की शीघ्र आज्ञा दीजिए। मैं शत्रुओं के दल का डटकर नाश करूंगा। यदि युद्ध से भाग जाऊ तो आपको लजाऊंगा ।