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प्रद्युम्न के उत्तर के कारण श्रीकृष्ण का क्रोधित होना एवं धनुष
बाण चलाना (५१७) यदुराज मन में पलताने लगे कि मैंने तो इससे सत्यभाव से कहा था लेकिन यह मुझ से बढ़ २ कर बातें कर रहा है अब इसे मारता हूं यह कहीं भाग न जाये क्रोध उत्पन्न हुआ और चित्त में सावधान हुये तथा सारंग पाणि ने धनुष को चढ़ा लिया।
६५१८) वे सोचने लगे कि अर्द्ध चन्द्राकार नामक बाण से मैं इसे मारूगा और अब इसका पराक्रम देगा। जब प्रद्युम्न में श्रीकृष्ण को धनुष चढ़ाते हुये देखा तो उसे भी क्रोध श्रा गया ।
(५१६) प्रद्युम्न ने तब उससे कहा कि हे कृष्ण तुम्हारा धनुष तो छिन गया है। जब श्रीकृष्ण का धनुष टूट गया तो उन्होंने दूसरा धनुष चढाया।
(५२०) फिर प्रद्युम्न ने बाण छोड़ा जिससे श्रीकृष्ण के धनुष की प्रत्यंचा टूट गयी। तब श्रीकृष्ण ने क्रोधित होकर तीसरे धनुष को अपने हाथ में लिया।
(५२१) श्रीकृष्ण जब जब प्रान पर बार करने के लिए बाण चढ़ाते तब तब बाण टूट कर गिर जाता । विष्णु ने जब तीसरा धनुप साधा लेकिन क्षण भर में ही प्रद्युम्न ने उसे भी तोड़ डाला ।
प्रद्यन्न द्वारा श्रीकृष्ण की वीरता का पुनः उपहाम करना
(५२२) प्रद्युम्न ने हंस हंस करके श्रीकृष्ण से बात कही कि आपके समान कोई वीर क्षत्रिय नहीं है? आपने यह पराक्रम किससे सीखा ? आपका गुरु कौन था यह मुझे भी बताइये ।।
_ (५२३) तुम्हारे धनुष बाण छीन लिये गये तथा तुम उन्हें अपने पास नहीं रख सके । तुम्हारा पौरुष मैने आज देख लिया है क्या इसी पराक्रम से राज्य सुख भोग रहे थे ?
(५२४) फिर प्रद्युम्न उनसे कहने लगा कि तुमने जरासिंध तथा कंस को कैसे मारा ? यह सुनकर श्रीकृष्ण बहुत खिन्न हो गये तथा दूसरा मायामयी रथ मंगाकर उस पर बैठ गये।