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आमवंती के गले में हार पहिनाना (६.६) फिर विचार करके सक्मिणी बोली कि मेरी बहिन जामवती है। हे पुत्र ! तुम्हें विचार कर कहती हूँ कि उसे जाकर हार दिला दो।
जामवंती का श्रीकृष्ण के पास जाना
(६०) तब ही प्रद्य म्न ने विचार कर कहा कि जामवती को यहां बुला लाओ। जो काममुदडी पहिन लेगी वही सत्यभामा बन जावेगी ।
(६०८) स्नान करके उसने कपड़े और गहने पहिने । उसके शरीर पर स्वर्ण कंकण सुशोभित हो रहा था । जामवंती वहां गयो जहां श्रीकृष्णजो बैठे थे।
(६०६) तब सत्यभामा आ गयी, यह जानकर केशव मन में प्रसन्न हुये । तब कृष्ण ने मन में कोई विचार नहीं किया और उसके वक्षस्थल पर हार डाल दिया।
(६१०) हार को पहिना कर उससे आलिंगन किया और उससे कहा कि तुम्हारे शंबुकुमार उत्पन्न होगा । जब उसने अपना वास्तविक रूप दिखलाया तो नारायण मन में चकित हुए।
(६११) तब महमहण ने इस प्रकार कहा कि मेरा मन विस्मित और अंचभित कर दिया । यदि यह चरित सत्यभामा ने जान लिया तो विकृत रूप करके मोह लेगी । वास्तव में जो विधाता को स्वीकार है उसे कौन मेद सकता है । श्रीकृष्ण कहने लगे कि पुण्यवान ही निष्कंटक राज्य करता है।
(६१२) जब जामवंती के पुत्र उत्पन्न हुआ तो उसका नाम शंबुकुमार रखा गया । वह अनेक गुणों वाला था तथा चन्द्रमा की कांति को भी लज्जित करने वाला था।
सत्यभामा के पुत्र उत्पत्ति (६१३) जिसकी सेवा सुर और नर करते थे ऐसा प्रथम स्वर्ग का देव आयु पूर्ण होने से चय कर सत्यभामा के घर पर उ.पन्न हुआ ।
(६१४) जो वहां से चयकर अनेक लक्षणों वाला गुणों से पूर्ण अत्यधिक सुन्दर एवं शीलवान सत्यभामा के घर पुत्र हुश्रा उसका नाम सुभानु रखा गया।