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(५३४) प्रद्युम्न का पौरुष देखकर श्रीकृष्ण बड़े क्रोधित हुये । दे उसी क्षण वन प्रहार करने लगे जिससे पर्वत के टुकड़े न होकर गिर गये ।
(४३५) प्रद्युम्न ने दैत्य बाण हाथ में लिया और नारायण को यमलोक भेजने का विचार किया । तब श्रीकृष्ण को बड़ा आश्चर्य हुआ कि अभी तक वे इसका चरित्र नहीं जान सके ।
( ५३६ ) इस प्रकार बड़ा भारी युद्ध होता रहा जिसमें कोई किसी को नहीं जीत सका । दोनों ही बड़े बलवान योद्धा है जिनके प्रहार से ब्रह्मांड भी फटने लगा |
श्रीकृष्ण द्वारा मन में प्रथ मन की वीरता के बारे में सोचना
( ५३७ ) तब क्रोधित होकर श्रीकृष्ण मन में कहने लगे कि मेरी ललकार को रण में कौन सह सकता है ? मेरे सामने कौन रहा क्षेत्र में खड़ा रह सका है ? संभव है कुलदेवी इसकी सहायता कर रही है।
(५३८) मैंने युद्ध में कंस को पछाड़ा और जरासिंध को रण में ही पकड़ कर मार डाला | मैंने सुर असुरों के साथ युद्ध किया है। जिस ने शत्रु गर्न किया वही मेरे सम्मुख खेत रहा ।
श्रीकृष्ण का रथ से उतर कर हाथ में तलवार लेना
( ५३६ ) तत्र उसने धनुष को छोड़कर हाथ में चन्द्रहंस ले लिया । वह खड्ग बिजली के समान चमक रहा था मानों यमराज ही अपनी जीभ को फैला रहा हो ।
( ५४० ) जब हाथ में खड्ग लिया तो ऐसा लगने लगा मानों श्रीकृष्ण ने चमकते हुए चन्द्र रत्न को ही हाथ में पकड़ा हो। जब वे रथ से उतर कर चलने लगे तो तीनों लोक भयभीत हो गये ।
(५४१) इन्द्र, चन्द्रमा तथा शेषनाग में खलबली मच गयी तथा ऐसा लगने लगा मानों सुमेरु पर्वत ही काँप रहा हो । देवांगनायें मन में कइने लगी कि देखें अब इसे कैसे मारता है ?
(५४२) जब श्रीकृष्ण क्रोधित होकर दौड़े तो रुक्मिणी ने मन में सोचा कि दोनों की हार से मेरा मरण है। श्रीकृष्ण के युद्ध करने से प्रद्युम्न गिर जायगा ।