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(११) (३५४) ज्यों ही माली ने पुकार की, भानुकुमार हथियार लेकर रथ पर चढ़ गया तथा पवन के समान वहां दौड़ करके अाया ज बन्दरों ने बाड़ी को चौपट कर दिया था।
प्रद्य म्न द्वारा मायामयी मच्छर की रचना ((३५५) तब प्रद्युम्न ने एक मायामयी मच्छर की रचना की । जहां भानुकुमार थ। उस स्थान पर उसे भेज दिया । मच्छर के काटने से भानुकुमार वहां से भाग गया ।
(३५६) भानुकुमार भाग करके अपने मन्दिर में चला गया । उस समय दिन का एक पहर बीत गया था। प्रद्य म्न को बहुत सी स्त्रियां मिली जो मासुकुमार के तेन्त पड़ने जा रई थी। प्रद्युम्न द्वारा मंगल गीत गाती हुई स्त्रियों के मध्य विघ्न पैदा करना
(३५७) तेल चढा करके उन्होंने श्रृंगार किया और वे भले मंगल गीत गाने लगी । कुमार रथ पर चढा तथा स्त्रियां खड़ी हो गई और फिर कुम्हार के यहां (चाक) पूजने गई ।
(३५८) तब प्रद्युम्न ने एक कौतुक किया और रथ में एक घोड़ा और एक द जोत कर चल दिया । कंद और घोड़ा अरडा करके उठे और भानुकुमार को गिरा कर घर की ओर भाग गये |
(३५६) भानुकुमार के गिरने पर वे स्त्रियां रोने लगी तथा जो गाती हुई आयी थीं वे रोती हुई चली गयीं । जब ऊंट और घोड़ा अरड़ा कर उठे उससे बड़ा अपशुकुन हुआ जिसको कहा नहीं जा सकता। प्रद्य म्न का वृद्ध ब्राह्मण का भेष बनाकर सत्यभामा
की बावड़ी पर पहुँचना (३६०) फिर प्रद्युम्न ने ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया और धोती पहिल कर कमंडलु हाथ में ले लिया । स्वाभाविक रूप से लकड़ी टेकता हुधा चलने लगा और कुछ देर पश्चात् यावड़ी पर जा पहुँचा ।
(३६१) वहां जाकर वह खड़ा हो गया जहां सत्यभामा की दासी खड़ी थी। वह कहने लगा कि भूखे प्रामए को जिमामो तथा जल पीने के लिये कमंडलु को भर दो।