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( १९३) (४५६) पांचों पाण्डब जो पंच यति हैं तुम जानते ही हो ये कुन्ती के पुत्र हैं तथा अतुल बल के धारक हैं । अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव इनके पौरुष का कोई पार नहीं है।
(४६०) छापन कोटि यादव बड़े बल शाली हैं उनके भय से नत्र खंड कांपता है । ऐसे कितने ही क्षत्रिय जहां नियास करते हैं तुम अकेन्ने उन्हें कैसे जीत सकोगे?
) हा मछम होकर बोला कि मैं अशेष यादवों के बल के अभिमान को चूर कर दूंगा, और पाण्डवों को जिनके सभी नरेश साथी हैं युद्ध में इरा दूंगा । नारायण और बलभद्र सभी को रण में समाप्त कर दुगा केवल नेमिकुमार को छोड़कर जो कि जिनेन्द्र भगवान ही हैं।
(४६२) मदनकुमार का चरित्र सब कोई सुनो । प्रन्युम्न नारायण से युद्ध कर रहा है। पिता और पुत्र दोनों ही रण में युद्ध करेंगे यह देखने के लिये देवता भी आकाश में विमान पर चढ कर आ गये ।
रुक्मिणी की बाँह पकड़ कर यादवों की सभा में ले जाकर उसे
छुड़ाने के लिए ललकारना
(४६३) तच प्रद्य म्न क्रोधित होकर तथा माता की याँइ पकड़ कर ले गया। जिस सभा में नारायण बैठे थे वहां मायामयी रुक्मिणी के साथ पहुँच गया।
(४६४) सभा को देखकर प्रद्युम्न बोला कि तुम में कौन बलवान नत्रिय है उसको दिखाकर रुक्मिणी को ले जा रहा हूँ। यदि उसमें बल है तो आकर छुदा ले। सभा में स्थित प्रत्येक वीर को सम्बोधित करके
युद्ध के लिए ललकार
(४६५) हे नारायण ! तुम मथुरा के राजा कंस को मारने वाले कहे जाते हो । जरासंध को तुमने पछाड कर मार दिया था। अब मुझ से रुक्मिणी को श्राकर बचा लो।