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(४२४) स्त्रियां जाकर वहां पहुँची जहां बलराम कुमार बैठे हुये थे । बड़ी ही युक्ति के साथ विनय पूर्वक कहा कि रुक्मिणी ने ऐसे काम किये हैं
हलधर के दूत का रुक्मिणी के महल पर जाना
( ४३५ ) बलराम ने कोधित होकर दूत को भेजा और वह तत्काल पवनवैग की तरह रुक्मिणी के पास पहुँचा। सिंह द्वार पर जाकर खड़ा हो गया और रुक्मिणि को इसकी सूचना भेज दी।
(४३६) तत्र मदन (प्रद्युम्न) ने फिर विचार किया और भूडे हुये ब्राह्मण का भेष धारण किया। उसने स्थूल पेट एवं विकृत रूप धारण कर लिया तथा वह आड़े होकर द्वार पर गिर गया।
(४३७) तब दूत ने उससे कहा कि हे ब्रह्मण उठो जिससे हम भीतर जा सके। फिर उत्तर में ब्राह्मण ने कहा कि वह उठ नहीं सकता । लौट करके फिर आना ।
(४३८) उसके वचनों को सुनकर वे क्रोधित होकर उठे और उसका पैर पकड़ कर एक ओर डाल दिया। तब उसने कहा कि ऐसा करने से यदि ब्राह्मण मर गया तो उनको गोहत्या का पाप लगेगा |
प्रवेश न प्राप्त कर सकने के कारण दूत का वापिस लौटना
(४३६ ) इस प्रकार जानकर वह वापिस चला गया तथा बलभद्र के पास खड़ा हो गया । द्वार पर एक ब्राह्मण पड़ा हुआ है वह ऐसा लगता है मानों पांच दिन से मरा पड़ा हो ।
(४४०) हम उन तक प्रवेश प्राप्त नहीं कर सके क्योंकि वह पोल (द्वार) को रोक कर पड़ा हुआ है यदि उसके पैर पकड़ कर एक ओर डाल दिया जावे और वह मर जावेगा तो ब्राह्मण हत्या का पाप लगेगा।
स्वयं हलधर का रुक्मिणी के पास जाना
(४४१) बान सुनकर बलभद्र क्रोध से प्रज्वलित होकर चले । तथा उनके साथ दस बीस आदमी गए और वे पत्रन-वेग की तरह रुक्मिणी के घर पहुँच गए।