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। १६४ ) (१६E) कुमार ने उसे ललकार कर जमीन पर दिया कि वह हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया । प्रद्य म्न के पराकम को देखकर वह मन में बहुत डर गया तथा छत्र चंबर लेकर उसके आगे रख दिये ।
(२८०) हंसकर प्रद्युम्न को सौंपते हुये किंकर बन कर उसके पैरों में गिर गया । फिर वह प्रद्य म्न आगे चला और तीसरी गुफा के पास आया।
(२०१) उस वीर ने नाग गुफा को देखा । उस साहसी तथा धैर्यशाही ने उस गुफा का निरीक्षण किया। एक भयंकर सर्प धनघोर गर्जना करता हुआ पाकर प्रद्युम्न से भिड़ गया ।
(२०२) प्रद्य म्न ने मन में उपाय सोचा और वह सर्प को पकड़ कर खूब मारने लगा तब उसका अतुल बल देखकर वह शंकित हो गया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
(२०३) प्रद्य म्न को बलवान जानकर चन्द्रसिंहासन लाकर सौंप दिया। नागशल्या, वीणा और पाबड़ी ये तीन विद्याए उसके सामने रख दी।
(२०४) सेना का निर्माण करने वाली, गेहकारिणी, नागपाश तथा . विद्यातारिणी इन विद्याओं का उसे वहां से लाभ हुश्रा । फिर वहां से यह स्नान करने के लिए सरोवर पर चला गया।
(२०५) उसे स्नान करते हुये देखकर वहां के रक्षक दौड़े और कहा कि तुम कौन पुरुष हो जो मरना चाहते हो ? जिस सरोवर की रक्षा करने के लिए देवता रहते हैं उस सरोवर में नहाने वाले तुम कौन हो?
(२०६) वह वीर क्रोधित होकर बोला कि श्राते हुये बज को कौन मेल सकता है ? वही मुझ से युद्ध करने में समर्थ हो सकता है जो सर्प के मुख में हाथ डाल सकता है।
(२०४) अन्त में रक्षा कहने लगे कि यह भयंकर योद्धा है मानेगा नहीं। वे चुपचाप उसके मुख की ओर देखकर उसको मगर से चिन्हित एक ध्वजा दी।
(२०८) इसके पश्चात् जब यह वीर हृदय में साइस धारण कर अग्नि कुण्ड में गया तो वहां का रहने वाला देव संतुष्ट होकर उसके पास आया और अग्नि का जिन पर प्रभाव न पड़े ऐसे कपड़े दिये ।