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(२४८) कुमार का मन वांव पूरा पड़ जाने के कारण बड़ा खुश हुश्रा । फिर वई विद्याओं को लेकर वापिस चल दिया । (उसने कहा) मैं तुम्हारा लड़का हूँ तथा तुम मेरी माता हो । अब कोई युक्ति बतलाओ जिससे मैं तुम्हें प्रसन्न कर सकू।
(२४६) तथ कनकमाला का इदय वैट गया और उसने सोचा कि मुझ से इसने कपद किया है। एक तो मेरी लज्जा चली गयी दूसरे कुमार विद्याओं को अपने हाथ लेकर चलता बना।
(२५०) कनकमाला मन में दुःखी हुई । बइ सिर को कूदने एवं कुचेष्टा फरने लगी। अपने ही नखों से स्तन एवं हृदय को कुरेच लिया तथा केश बिखेर कर बेसुध हो गयी।
(२५१) वह रोने और पुकारने लगी तथा उसने यमसंबर को सारी बात बतलाई । तभी पांच सौ कुमार यहां आये और कनकमाला के पास बैठ गये।
. (२५२) कालसंबर से उसने कहा कि देखो इस दत्तक पुत्र ने क्या कार्य किया है ? जिसको धर्मपुत्र करके रखा था वही मुझे बिगाड़ कर चला गया।
कालसंवर द्वारा प्रद्य म्न को मारने के लिये कुमारों को भेजना
(२५३) वचनों को सुनकर राजा उसी प्रकार प्रज्वलिन हो गया मानों अग्नि में श्री ही डाल दिया हो । पांच सौ कुमारों को बुलाकर कहा कि शीच जाकर प्रद्युम्न को मार डालो।
(२५४) तब कुमारों की मन की इच्छा पूरी हुई । इससे राजा भी विरुद्ध हो गया । सब कुमार मिलकर इकठे हो गये और चे मदन को बुलाकर वन में गाए ।
(२५१) तब आलोकिनी विद्या ने कहा कि हे प्रद्युम्न ! तुम असावधान क्यों हो रहे हो। यह बात मैं तुमसे सत्य कहती हूँ कि इन सबको राजा . ने तुम्हें मारने भेजा है।
(२५६) तब साहसी और धीर वीर कुमार के द्ध हो गया और सब • कुमारों के नागपाश डाल दी | ZEE कुमारों को आगे रख कर शिला से बांध
करके लटका दिया।