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( १६८ } कनकमाला का प्रद्युम्न पर प्रासक्त होना (२३६) उस श्रेहट वीर प्रा त के अत्यधिक मनोहर रूप को देखकर कामवाण ने उसके (कनकमाला के) शरीर को छेद दिया । फिर उसने दौड़कर उसे अपनी छाती से लगाया किन्तु वह छुड़ाकर चला गया ।
प्रद्युम्न का मुनि के पास जाकर कारण पूछना (२४०) प्रद्य म्न फिर यहां पहुँचा जहां उद्यान में मुनीश्वर बैठे हुये थे। उनको नमस्कार कर पूछा कि जो उचित हो सो कहिये ।
(२५१) कनकमाला मेरी माता है लेकिन वह मुझे देखकर काम रस में डूब गयी। उसने अपनी मर्यादा को तोड़कर मुझे आंचल में पकड़ लिया । इसका क्या कारण है यह मैं जानना चाहता हूँ।
(२४२) तब मुनिराज ने उसी समय कहा कि मैं वहीं बात कहूँगा जो तुम्हारे जन्म से सम्बन्धित है । मोरठ देश में द्वारिका नगरी है वहां यदुराज निवास करते हैं।
(२४३) उनकी स्त्री रुक्मिणी है जिसकी प्रशंसा महीमंडल में व्याप्त है। उसके समान और कोई स्त्री नहीं है । हे मदनं, यही तुम्हारी पाना है।
(२४१) धूमकेतु ने तुम्हें वहां से हर लिया और शिला के नीचे दबाकर वह चला गया | यमसंबर ने तुम्हें वहां से लाकर पाला 1 तुम वही प्रद्य म्न हो यह अपने आपको जान लो ।
(२४५) कनकमाला ने जो तुम्हें अंचल में पकड़ना चाहा था वह तो पूर्व जन्म का सम्बन्ध है । यदि यह तुम्हारे प्रेसरस में डूबी हुई है तो छलकर उससे तीन विधायें प्राप्त करलो ।
(२४६) मुनि के प्रचनों को सुनकर वह वहां से लौट गया तथा । कनकमाला के पास जाकर बैठ गया और कहने लगा कि यदि तुम मुझे तीनों विद्याए दे दो तो मैं तुम्हें प्रसन्न करने का उपाय कर सकता हूँ।
(२४७) कुमार से प्रेमरस की बात सुनकर वह प्रेम लुब्ध होकर व्याकुल हो गयी । उसने यमसंबर का कोई विचार नहीं किया और तीनों विद्यायें उसको दे दी।