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(२८६) इनको लेकर वह बीर आगे चला और फलों वाला एक आम का वृक्ष देखा । उसके लगे हुये श्राम को तोड़कर खाने लगा तो वहां रहने वाला देव बंदर का रूप धारण कर वहां आ पहुँच।।।
(२१०) श्राम तोड़ने या कौन वीर है मेरी से पार पाईले युद्ध करो । तब प्रद्य म्न क्रोधित होकर उसके पास गया और उससे जूझकर बड़ा भारी युद्ध किया।
(२११) प्रद्युम्न ने उसे पछाड़ कर जीत लिया तो वह हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा और दोनों हाथों में पुष्पमाला ले कर पावड़ी की जोड़ी उसे दी।
_(२१२) तब वे कामदेव को कपित्थ वन में ले गये और उसको यहां भेज कर वे खड़े रह गये । 'जन बह वीर बन के बीच में गया तो एक उहण्ड हाथी चिंघाड़ कर आया ।
(२१३) वह हाथी विशालकाय एवं मदोन्मत्त था। शीघ्र ही हाथी कुम र से भिड़ गया। प्रशु म्न ने उसको पछाड़ कर दांत और सूड तोड दिये और स्वयं कंधे पर चढ़ कर उसके अकुश लगाने लगा।
(२१४) इसके पश्चात् प्रद्युम्न को वे बावड़ी में ले गये जहाँ काल के समान सर्प रहता था। वह वीर उसकी बंबी पर जा कर चढ़ गया जिससे वह सर्प उसमें से निकल कर प्रद्युम्न से भिड़ गया।
(२१५) वह उस सर्प को पूंछ पकड़ कर फिराने लगा जिससे वह सर्प व्याकुल हो गया । उस विषधर (ध्यंतर) ने प्रद्युम्न की सेवा की और काम मूदड़ी एवं धुरी दी।
(२१६) मलयागिरि पर्वत पर जब वह गया तो आश्चर्य से वहां खड़ा हो गया । अमरदेव यहां दौड़कर आया और अपने देह से संघात (वार) करने लगा।
(२१४) वह देव हार गया और उसकी सेवा करने लगा। उसने ककरण की जोड़ी लाकर सामने रख दी तथा सिर का मुकुट और गले का हार दिया।
(२१८) वरहासेन नामक जहा गुफा थी वहां उन कुमारों ने प्रध म्न को भेजा। वहां कोई व्यंतर देव था जिसने क्षण भर में वराह का रुप धारणा कर लिया ।
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