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(१८८) कुमारों ने प्रद्युम्न से कहा कि हे प्रद्युम्न सुनो विजयागिरि के ऊपर जिन मन्दिर है जो मनुष्य उनकी पूजा करता है उसको पुण्य की प्राप्ति होती हैं।
(१८६) प्रत्य म्न यह वचन सुनकर प्रसन्न हुआ और पहाड़ पर चढ़कर जिनमन्दिर को देखने लगा। परकोटे पर चढ़कर धीर प्रद्युम्न ने देखा तो : एक भयंकर नाग फुकारते हुये मिला।
(१६) ललकार कर प्रद्य म्न नाग से भिड गया तथा पूछ पकड़ कर उसका सिर उलदा कर दिया । उस पराक्रमी प्रद्य म्न को देखकर वह आश्चर्य चकित हो गया तथा यक्ष का रूप धारण कर खड़ा हो गया।
(१६१) वह दोनों हाथ जोड़कर कर सत्य भाव से कहने लगा कि तुम पहिले कनकराज थे । जब तुम (कनकराज) राज्य त्याग कर तप करने चले तो मुझे अपनी सोलह विचार दे गये थे।
(१६२) (और कहा कि) कृष्ण के घर उसका अवतार होगा । तुम प्रद्युम्न को देख लेना । उस राजा की यह धरोहर है। इसलिये अपनी . विधायें सम्भाल लो ।
१६ विद्याओं के नाम (१६३-१६६) १. हृदयारलोकनी २. मोहिनी ३. जलशोषिणी ४. रत्नदशिणी ५. श्राकाशगामिनी ६. घायुगामिनी ७. पातालगामिनी, शुभर्शिनी ६. सुधाकारिणी १०. अग्निस्थंभिणी ११. विद्यातारणी १२. बहुरूपिणी १३. जलपंधिणी १४. गुटका १५. सिद्धिप्रकाशिका (जिसे सब कोई जानते है) १६. धार बांधने वाली धार] बंधिणी ये सोलह विद्यायें प्राप्त की तथा उसने अपूर्व रत्न जदित मनोहर मुकुट लाकर दिया । मुकुद सौंप कर फिर प्रद्युम्न के चरणों में गिर गया तथा प्रद्युम्न हंसकर वहां से आगे बढा । वह अद्य म्न वहां पहुंचा जहां पांच सौ भाई हंस रहे थे।
(१६५) उन कुमारों के पास जब प्रधम्न गया तो मन में उनको आश्चर्य हुआ। वे उपर से प्रेम प्रकट करने लगे तथा उसे लेजा कर दूसरी गुफा दिखाई।
(१६) उस गुफा का नाम काल गुफा था। कालासुर दैत्य वहां रहता था । पूर्व जन्म की बात को कौन मेट सकता है प्रधुम्न उससे भी जाकर भिड़ गया।