________________
(१३८) उसका मन. वन क्रीडा को हुआ तथा विमान पर पाकर अपनी स्त्री सहित गया । वे उस बन के मध्य पहुँचे जहां वीर प्रशम्न शिला के नीचे दबा हुआ था।
(१३१) वन के मध्य में रखी हुई पूरी बापन हाथ ऊंची (लंबी) शिला को देखी । वह क्षण में ऊची तथा कर में नीची ही थी निहनियाज को उतर कर देखने लगा।
__ यमसंबर को प्रद्य म्न की प्राप्ति (१६२) राजा ने विद्या के बल से शिला को उठाया ! और अन्छी तरह देखा। जिसके शरीर पर बत्तीस लक्षण थे तथा जो सुन्दर था ऐसे कामदेव को यमसंबर ने देखा।
(१३३) कुमार को उठाकर गोद में लिया तथा लौट कर राजा विमान में गया। कचनमाला को पट्टानी पद देकर उसे सौंप दिया ।
(१३.} अत्यन्त रूपवान और अनेकों लक्षण वाले कुमार को कंचनमाला ने ले लिया। उसके समान रूप वाला अन्य कोई दिखाई नहीं देता था। यह राजा का धर्मपुत्र हो गया।
(१३५) वे विमान में चढ़कर वायु-वेग के समान शीघ्र ही (नगर में) पहुँच गये । नगर में सभी उत्सब मनाने लगे कि कचनमाला के प्रद्युम्न हुआ है।
(१३६) अत्यन्त रूपवान, गुणवान एवं लक्षणवान प्रणम्न सभी को निय था। वह द्वितीया के चन्द्रमा के समान बढ़ने लगा और इस सरह १५ वर्ष का हो गया !
प्रद्युम्न द्वारा विद्याध्ययन
(१६७) फिर वह पढने के लिये उपाध्याय के पास गया तथा उसने । लिखपढ़कर सब ज्ञान प्राप्त कर लिया । ला छन्द पयं तर्क शास्त्र बहुत पड़े। तथा राजा भरत के नाट्यशास्त्र का भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया । ।
९१३) धनुष एवं बाय-विद्या तथा सिंह के साथ युद्ध करना भी जान लिया। लड़ना, भिवता, निकलना तथा प्रवेश करने का सब ज्ञान प्रश्न कुमार को हो गया।