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( १४६ ) (६५) तब भीमराव मन में कुपित हुए तथा स्थान स्थान पर नगाड़ा बजने लगा । घोड़ों पर काठी कसो, हाथियों को रवाना करो तथा काल | रूप होकर सब चढ़ाई करो।
(६६) जब राजा शिशुराल को पता चला कि रुक्मिणी चोरी चली गयी है तब बड़े गुस्से में आकर उस ने कहा कि शीघ्र ही सब घोड़ों पर जीन फसी जावे।
७) रथों को सजाश्री, हाभियों को तैयार करो। सभी सुभट तैयार होकर श्राज रण में भिड़ पड़ो। सब सामंत अपने हाथों में तलवार ले ले तथा धनुषधारी धनुष की टंकार करें।
(७१) शिशुपाल एवं भीष्मरात्र दोनों के दल की सेना के कारण | स्थान (मार्ग) नहीं दीखता था । घोड़ों के खुरों से इतनी धूल उछली कि मानों भादों के मेघ मँडरा रहे हो ।
(७२) दुलते हुये राज-चिन्ह चंबर एस मालूम होते थे मानो सैनिक हाथ में भाग लेकर प्रविष्ट हो रहे हो। अथरा ढुलने हुप राज-चिन्ह बैंबर ऐसे मालुम होते थे मानों अग्नि में कमल स्थित रहे हो । चारों प्रकार को सेना इकट्ठी होकर पायु-वैग के समान रणभूमि में आ पहुंची।
. (७३) अपरिमित दल श्राता हुचा दिखाई दिया । धूल उड़ी जिससे सूर्य चन्द्रमा छिप गये। आश्चर्य के साथ दर कर रुक्मिणी कहने लगी कि हे महामहिम्न ! रण में कैसे जीतोगे?
__ (७४) हे रुक्मिणी ? धैर्य रखो, कायर मत बनो। तुमको मैं आज अपना पुरुषार्थ दिखलाऊगा । शिशुपाल को युद्ध में आज समाप्त कर दूंगा और भीष्मराव को बांध करके ले आऊंगा ।
(५५) बात कहत हुचे ही सेना आ पहुँची । शिशुपाल क्रोधित होकर बोला, हे सरदार लोगो, अपने हाथों में तलवार ले लो। अाज मुठभेड होगी, । कही ग्वाला भाग न जावे ।
(७६) शिशुपाल और श्रीकृष्ण की इस प्रकार मेंट हुई जैसे अग्नि में भी पड़ा हो । हाथ में धनुषवाण संभाल लिया । अब संग्राम में पता पड़ेगा । अपने मन में पहिले के वचनों को याद करो। तुमने चोरी से रुक्मिणी ही कर लिया यही तुमने उपाय किया । अब तुम मिल गये हो; कहां जाओगे १ प्रब मार कर ही रहूँगा।