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( १२१ )
जामवती का श्रीकृष्ण के पास जाना
तवहि मय मन कहइ विचारू, जंववती कहु लेहि हकारि ।
काममूंदरी पहरइ सोइ, बोले रुप सतिभामा होइ ||६०७॥
न्हाइ धोइ पहरे ग्राभरण, करण कंकरण सोहइ ते रमण ।
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तिहिठा बइठे कान्हू मुरारि, तहा गइ जामवंती नारि ॥ ६०८ ॥
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तर मन विहसिउ तब मन चाहि, तहा जाएगइ सतिभामा आहि ।
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बाहुडि कन्हन कीयउ विचारु, तिहि बलि घालिउ हरु ।।६०९||
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घालि हारू श्रालिंगनु कियउ, तिहि उपदेस नाहि संभयउ ।
फुरिण गिय रूप दिखालि जाम, मन भिभिउ नारायण ताम ।। ६१० ।। वस्तुबंध-
ताम जंपइ एम महमहरण ।
मन भिभिउ विसमउ करइ, जड़ यउ चरित सतिभामा जारगइ |
वैरूप करि मोहरणइ जा संवइ आगइ
जो विहिरणा सइ चितयऊ, सो को पुनवंत जंपइ तुब, करइ राज
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मेटरणहारु ।
अनिवार ॥६११॥
(६०७) १. तुम्हि (ग) २. बोल रूप ( ख ) बोले रुप ( ग )
( ६०८ ) १ ते रमण (ख) से रया (ग) मूलपाठ तान्योरख २. महिला ( ग ) ( ६०६) १. विगसइ के सथ २. इह (ग) ३. ताह गलइ हंसि घाल्यो हार (ग) (६१०) १. करइ (ग) २. हा झाइ देउ संचर (ग) उरि बेइ (ख) काम बड़ी घटी उतार देख राज मम्बवतो नारी ॥ ( तीसरे चोथे चरण के स्थान पर है )
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(६११) ग प्रति में निम्न पाठ है
ताम जंपइ जंप एम महमहरु मनि विभउ विस्म भयो । एहु रूप कहि मोहनी, ममरिण कुवरि माझ्यो विनाशि |
चरितु सतभामा जाली, एह काम कटु की कचणु हरिराजा चिति चितव
जो विहिरण जिसु चतयउ सो फिट मोह्यो जाई । जाहि जंवती विलसंतू करहि राज वह भाइ ॥
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