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कनकमाला का प्रद्युम्न पर आसक्त होना देखि सरूप मयण वर वीर, कामवाण तसु हयउ सरीर । फुणि सो अंचलु लागी धाइ, करि उतरु वह चल्योउ छुड़ाइ ॥२३॥
प्रा म्न का मुनि के पास जाकर कारण पुलना फुरिण सो मयणु सपतउ तहा, बरण उद्यान मुनिस्वरु जहा । नमस्कार करि पूछइ सोइ, कहहु वयण जो जगतउ होइ ।।२४०॥ कणयमाल माता मुह तणी, सो मोपेखि कामरस घणो । आंचल गहिउ छाडि तहि काणि, कारणु कहहु कवण मुहि जाणी।२४१। तं मुणियर ज पइ तखोणी, कहहु बात तुह जम्मह तरणी। सोरठ देस वारमइ ठाउ, तिहि पुरि निमस जादमराउ ॥२४२॥ ताको घरणि प्राहि रुकिमिणी, जह कीरती महमंडल घणी । तिहि सम तिरी न पूजइ कोइ, कंद्रप जग्गरिण तिहारी होइ॥२४३॥
(२३९) १. मयण सुन्दर (म) २. न सुहयउ (ख) हरिएज (क) तिसु हुमा (ग) ३. प्रचलि (क ग) ८. कहि (ग) ५. उत्तरु (ग) ६. गपउ (क) चल्या (ग)
मोट-तीसरा और चौथा चरण ख प्रति में नहीं हैं १२४०) १. बे (क) जुगती (ग) २. जैन धर्म हइ निश्चय जहाँ (ग)
(२४१) १. कंचनमाला (ग) मा (ग) ३ मोहि (क) महु (ख) मुहि (ग) ४. सा (क ग) ५. मोहि (क) मह (ख। हम (ग) ६. देखि (क ग) ७. सरि हणी (क ग) हगो (ख) ८, अंचल (क ग) ६. छोडि (ग) १०. मुखोसर जारिंग (क)
(२४२) १. तउ (क) तव (ग) २. संघिरिण (ख) ३. जनमह (क) जम्मतर (ख) जनम्ह (ग) ४. द्वारिका (क) वारवं (ग) ५. स्वामी (क) निवस (स्न ग)
(२४३) १. तिहको (क) तिहि को (ख) तिमु को (ग) २. परिणी (ख) ३. प्रधाइ (ग) ४. जस (क) ५. तिहरि (ग) ६. भीनधि (क) तिरिय न (ख) तिया न (ग) ७. तुम्हारी (क) तुहारी (ख, ग)