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निसुरिण वयसा पासउ लोहि, मानसिक से आयो मोह । उदिधिमालः मइ यह जोडि, फुणि प्रदवन कहै कर जोडी ।४५५॥ विहसि माइ तव रुपिणि कहह, कहा सुभइया नारद ग्रहइ । निसुरिग पूत यह पाखउ तोहि, उदधिमाल दिखलावहि मोहि ४५६
प्रध म्न द्वारा रुक्मिणि को यादवों की सभा
में ले जाने की स्वीकृति लेना तउ मयरद्धउ कहइ सभाइ, बोल एकु हो मागो माइ । वाह परि तोहि सभा वारि, लेजइहो जादौनी पचारि ॥४५७।।
यादवों के बल पौरुष वा रस्मिणि द्वारा वर्णन भरणइ माइ सुणि साहस धोर, ए जादौ है बलीए वीर । हरि हर कान्हु खरे सपरान, इन्ह आगइ किम पाबहु जाण ।४५८। पंचति पंडव पंचति जणा, अतुल बल कौंतीनन्दना । अर्जुन भीमु निकुल सहदेउ, इनके पबरिष नाही छेव ॥४५६।। छपन कोटि जादौ बलिवांड, जिनके भय कापइ नवखंड | एसे खत्री वसइ वहूत, किम्व तू जिणइ अकेलो पूत ॥४६०॥
(४५५) १. लई प्रजोडि (ग) लईय बहोडि (क ख) २. स्यहोद्धि (ग) (४५७) १. दीजै (ग) (४५८) १. भानउ चलो हउ (ग) २. मर्याल (क) कहियहि (ख)
(४५६) १. पांचति (ख) प्रवर (ग) २. पंच3 (ग) ३. जाण (क ख) ४. अवर मल्ल कैरव नन्दना (क) मल्ल कुती गंदण (ख) बाल कुतोमाइन (ग)
(४६०) १. तानि (ख) ब्रह्मा (क) २. जिसे (ग) ३. मिस (ग)। ४. जाइसि एकल (क)