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= मैलइ वाण मयण तुजि चडिउ, सोउ दारण तूटि घर परघउ । विस्नु सभालइ धनहर तीनि, खिरण मयरद्धउ घालइ छोनि ॥५२१॥
प्रद्युम्न द्वारा श्रीकृष्ण की वीरता का पुनः उपहास करना हसि हसि बात यह प्रदवर, तो मलाही खो कर । कापह सीख्यउ पोरिष ठाउणु,मोसिह कहइ तोहि गुर कत्रणु ॥५२२॥ धनुष वाण छीने तुम तणे, तेउ राखि न सके आपणे । तो पवरिषु मै दीठउ आजु, इहि पराण तइ भूजिउ राजु ॥५२३॥
फुणि मयरद्धउ जंपइ ताहि, जरासंध क्यो भारिउ कांसु 1 । विलख बदन तव के सब भयर, दूजउ रथ मयायउ ठयउ ||५२४।।
श्रीकृष्ण का क्रोधित होकर विभिन्न
प्रकार के बाणों से युद्ध करना
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तहि पारूढो जादौराउ, कोपारूढु लयउ करि चाउ । = अगनि वाणु धायउ प्रजुलंतु, चउदस झल बहु तेज करंतु ॥५२५॥
(५२१) १. सोइ घणष टि भुइ पगिज (ग)
(५२२) १. तर हसि बात कहा परदवणु (ख) २. अजम्न (ग) ३. रहसि : भार पूछइ महमहण (ग)
(५२३) १. छेवे तुहि तणे (ख) (५२४) १, किम जोतिज (ख) सइ जोत्या ग) २. मूल प्रति में अर्थ पाठ है।
(५२५) १. अनि वास मेला महण (ख) प्रगनिवारण प्राई परमलंत (क) २. तिहि की पाच न माई सहण (स)