________________
तउ राणो मन विसमउ करइ, अइसइ पूतउ रह को घरइ । जइ उपजइ तो कहसा न जाइ, किमु करि नारायण पतियाइ 11४०५।। तउ रूपिणी मनि भयो संदेह, जमसंबर घर वाढिउ एहु । विद्या बलु हर दीएर घगाउ, यह परभाउ अहि विद्या तणउ ॥४०६॥ फुणिइ जे पूछइ करि नयेणु, लयउ वरतु तुम्हि कारणु कवणु। तव रूपिरिग पूछइ धरि भाउ, सामी कहहु अापरणउ ठाउ ॥४०७।। काहा ते तुम्हि भो आगमरण, दीनी दिप्या तुहि गुर कवरण। जन्मभूमि हो पूछो तोहि, माता पिता पयासो मोहि ॥४०८!! तवहि रिसारणौ बोलइ सोइ, गुर वाहिरी दीख किमु होइ । गोतु नाम सो पूछइ ताहि, व्याह विरधि जहि सनवधु प्राहि ॥४०६।। हम परदेस दिसंतर फिरहि, भीख मांगि नित भोजन करइ | कहा तुसि तू हम कहु देहि, रूसइ कहा हमारउ लेहि ।।४१०॥
(४०५) १. उरिको (ग) २. कि उ करि लाभइ इसको माय (ग)
(४०६) १. हा तुम यह धरण उ (क) हइ इह यह घरणउ (ब) इसु पहि हह घरणी (ग) २. अस्थि तिसु तणी (ग)
(४०४) मूल प्रति के प्रथम वो चरण ख प्रति में से लिये गये हैं । १. दूजाइ (क) २. दमिरलो (ग) ३. लिउ बरु इह (ग)
१४०८) १. बोन्ही दीक्षा सो गुरु कवयु (ग) २. पयासह (क) पयासहि (स) प्रकोसउ (ग)
(४०) १. देखहि (क) दोस्पा (ख) हिष्टि (ग) २. लोहि (क) मोहि (ग) ३ होइ (ग)
(४१०) १. भीख मांगि (क) चरी मागि (ख) चारि भंग (ग) मूलप्रति में 'चरी मांगित' पाठ है । २. रूसी (क) रूसहि (ख) गट्ठी (ग)