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( ७ )
विहसि गंगु पपई ताहि, हउ परदेसी वाभरण ग्राहि ।
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दुखड टंक तुहारी देव, तउ ह्उ जीवत उवरउ केम्व ||३७० ॥
तउ जंपर वसुदेउ बहोडी, इहिर वयरण तुहि नाही खोडी ।
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मन आपणे धरइ जिन संक, मेरी तूटि जाइ किन टंक ॥ ३७१ ॥
तब तिन्हि मेहउ दीनउ छोडि, देखन सभा टांग गउ तोडि । तोडि दाग मैदो बाहुsिउ, वसुदेव राउ भूमि डिगयउ ॥ ३७२ ॥ वशुदेउराउ भूमि गिरि पडिउ, छपन कोटि मन हासउ भयउ ।
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निहि ठा सिगली सभा हसाइ, फुरिण सतिभामा के घर जाइ ॥ ३७३ ॥ प्रद्युम्न का ब्राह्मण का भेष धारण
कर सत्यभामा के महल में जाना
कनक धोवतो जनेउ घरं, द्वादस टीको चन्दन
करें । च्यारि वेद अचूक पढंत, पटराणी घर जायो पूर्त ॥ ३७४ ॥
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उभो भयो जाइ सीद्वार, कठिया जाइ जरगाइ सार ।
जेते वाभण भीतर घरणे, सतिभामा वरजे आपणे ॥ ३७५॥
मन मानउ
( ३७०) १ देखइ कत तुहारी सेव (क) २. तुह जिनवर देव (क) त ह तुम्ह ते उबर केव (ग) 'ह' मूलप्रति में नहीं है । (क) ( ३७१) १. तुम माही खोड (क) २. मा (ख) न (ग) ३. (२७२) १. भी ( क ख ग ) टांग (ख) टंग (ग) २. भूमि गत (क) वासुदेव भूमहि गिर पड़घो ( ग )
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(३७३) १. कोडि ( क ख ग ) २. मिलि हासन fee (क) ग प्रति हो वसुदेव कहा यह किया,
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ताली पारं सभाहलाई फुरिए सतिभामा के घर जाइ
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( ३७४ ) ग प्रति में करिहि कमंडलु घोली मंधि, द्वादश तिलक जनेउ कंठि । चारि वेद प्रचूरू भगाइ, पटराणी घर पहुंला जाइ ॥
१. चुपके ( ख ) २. पहूत ( क ख ) (२७५) १. जाइ सोह बुवारि (कख) सुतासु (ग)